मनोज कुमार खोलिया, बागेश्वर, उत्तराखंड
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत अपने नियमित साहित्यिक गतिविधियों को संचालित कर साहित्यप्रेमियों का जो संगम कर रहा है वह काबिले तारीफ है।यदि संस्था के दैनिक कार्यक्रम पर संक्षेप में नजर दौड़ाऊ तो मैं देखता हूँ कि प्रशासक मंडल के पदाधिकारियों के द्वारा दैनिक कार्यक्रम के समीक्षक ,संचालक व सम्मान पत्र प्रदाता के नाम तय किये जाते हैं। नाम तय करने के बाद कार्यक्रम का आकर्षक पोस्टर विशेष रूप से संस्था के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष आ. ओमप्रकाश फुलारा जी द्वारा बनाया जाता है।सम्मान पत्रों के डिजाइन देने का कार्य अलंकरण प्रमुख आ. प०सुमित शर्मा जी द्वारा किया जाता है। दैनिक सम्मान पत्रों का निर्माण आ ओमप्रकाश फुलारा प्रफुल्ल जी द्वारा बखूबी से किया जाता है। आ ओमप्रकाश फुलारा जी द्वारा संस्था की त्रैमासिक ई पत्रिका एक कदम और का कुशल संपादन किया जाता है।दिवस विशेष पर आ फुलारा जी द्वारा ई पत्रिका का संपादन भी किया जाता है।इसके अलावा संस्था राष्ट्रीय त्यौहारों जैसे विशेष अवसरों पर ऑनलाइन काव्यगोष्ठी का आयोजन, बच्चों में चित्रकला प्रतियोगिता, स्लोगन प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता ,दोहा प्रतियोगिता जैसे कई प्रतियोगिताएं वर्षभर आयोजित करते रहती है। इसके अलावा संस्था के संरक्षक आ. कौशल कुमार पाण्डेय, आस जी, राष्ट्रीय अध्यक्ष आ सुशीला धस्माना, मुस्कान दी,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ राहुल शुक्ल साहिल, राष्ट्रीय सलाहकार आ संतोष कुमार प्रीत जी द्वारा संस्था को विशेष सहयोग दिया जाता है।
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत से जुड़े मुझकों एक साल।हो गया पिछले साल गुरुदेव वत्स सर मुझको इस पटल पर लाये थे। उनको मैं बहुत बहुत धन्यवाद देती हूँ उन्होंने मुझकों इस पटल से जोड़ा,आज मैं इस पटल पर जुड़कर बहुत खुशी महसूस करती हूँ क्योंकि मुझको यह से बहुत सम्मान मिला मेरी रचनाओं को भी सराहा गया। मुझकों यह कई विधाओं में रचनाएँ नए नए छंद पढ़ने को व काफी कुछ सीखने को मिला ,मेरी रचनाओं में समीक्षा के कारण बहुत सुधार भी हुआ। पटल पर सभी रचनाकार एक से बढ़कर एक है , जो बहुत गुणी और हर विधा में अपना वर्चस्व भी रखते है ,और बहुत ही निष्ठा से अपनी रचनाएँ लिखते व पूर्ण समर्पित है ,साहित्य के लिए । उनके सानिध्य में सीखना लिखना मेरा सौभाग्य है। आदरणीय फुलारा सर ,पाठक सर, खोलिया सर , नितेंद्र जी परमार, हर कार्यक्रम काव्य सम्मेलन बहुत ही अच्छी तरह पटल व मंच संचालन द्वारा संचालित कर सभी का मनोबल बढ़ाते है। और भी वरिष्ठ रचनाकार भी हम सभी को प्रोत्साहित करते व मनोबल बढाते है। पत्रिका विमोचन में सभी रचनाकारों को आगे लेकर चलते है। मैं पटल के उज्ज्वल भविष्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ। व सभी समूह साथियों गुरुजनों को बधाई व शुभकामनाएं देती हूँ। धन्यवाद।
मंगला श्रीवास्तव, इंदौर
रामशंकर राय केहरि, मुंबई
इस संस्था से जुड़े सभी साहित्य साधकों मैं नमन करता हूँ और साधुवाद देता हूँ आपके सामूहिक पुनीत प्रयास के लिए। विचार एक बीज की तरह होता है ।अनुकूल मौसम ,उर्वरा भूमि और योग्य किसान का साथ मिलते ही वृक्ष में बदल जाता है। जिस तरह से किसान इस उम्मीद में की मौसम अनुकूल ही होगा अपनी खेती की तैयारी में लगा रहता है। वह मौसम आने के बाद अपनी तैयारी नहीं करता। विपरीत मौसम में अपने विकल्प पर विचार जरूर करता है। हम साहित्यकार सामाजिक भूमि के किसान हैं जो अपने विचार बीज के लिए उपयुक्त जमीन तैयार करते हैं इस उम्मीद में की वक्त आने पर कोई हमे यह दोष नहीं दे कि हमने अपनी भूमिका का निर्वहन नहीं किया । लेकिन भूमिहीन किसान चाह कर भी छटपटा कर रह जाता है, मन मसोस कर रह जाता है। मेरा यह मानना है कि अपनी यह संस्था विचार के धनी साहित्य साधकों को एक उचित मंच प्रदान कर रहा है। अतः हम सभी साहित्य प्रेमी लोगों का यह सामूहिक और व्यक्तिगत दायित्व बनता है कि हम इस संस्था के संरक्षण और संवर्धन के लिए हर मुमकिन प्रयास करें। किसी भी आंदोलन की शुरुआत एक व्यक्ति के विचार से होती है।लेकिन उसकी स्वीकार्यता और प्रभाव उसको एक आंदोलन में परिवर्तित कर देता है। आंदोलन कभी कभी युगान्तकारी होता है और वह रेफेरल पॉइंट बन जाता है। मेरी हार्दिक शुभेक्षा है कि विश्वजनचेतना हिंदी साहित्य जगत में वो स्थान प्राप्त करे कि इतिहासकारों को यह लिखना पड़े विश्व जनचेतना के पहले हिंदी साहित्य पटल वैसा था और अब ऐसा है।
मेरी नज़र से मैं यही कहूंगी कि विश्व जनचेतना ट्रस्ट एक आम इंसान को खास बनाता है. मैं एक साधारण गृहिणी हूं लेकिन जब से जनचेतना ट्रस्ट से जुड़ी हूं मेरी नज़रों में मैं खास बन गई हूं.और इसने मुझमें एक नये आत्मविश्वास का संचार किया. जनचेतना ने मुझे रसोई से बाहर की दुनिया दिखाई,इसने बताया कि घर में रहकर भी बहुत कुछ किया जा सकता है. विभिन्न राज्यों के लोगों से जुड़ना, ऐसा लगता है कि जैसे पूरा भारत घूम आई. मैं अभी लेखन कला में पारंगत नहीं हूं परन्तु जो भी लिखती हूं उस पर सभी की प्रतिक्रिया मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, मुझमें एक नया जोश भरती है. जिस भी दिन या जिस भी कारण से अगर मैं प्रातः गणपति स्तुति नहीं भेज पाती हूं तो ऐसा लगता है जैसे दैनिक दिनचर्या में एक महत्वपूर्ण चीज छूट गई है और उस दिन मन में बहुत मलाल आता है कि आज मैं पटल पर पूजा नहीं कर पाई. यह मेरा सौभाग्य है कि मैं इस कार्य हेतु हूं. यहां जबकभी भी कवि सम्मेलन आयोजित होता है और जब सम्मान पत्र प्राप्त होता है तो ऐसा लगता है कि इस भीड़ भरी दुनिया में मेरा भी कोई अस्तित्व है. मैं अपना नाम बार बार देखती हूं, उसके लिए विश्व जनचेतना का और इनके प्रशासन मंडल का जितना आभार प्रकट करूं कम होगा. ईश्वर से यही प्रार्थना है कि विश्व जनचेतना ट्रस्ट दिनों दिन बढ़ता रहे और इसकी चमक से कोई अछूता न रहे. अपने नाम के अनुरूप ये विश्व में चमकता रहे
शैलबाला कुमारी, नयी दिल्ली
मन्शा शुक्ला, अम्बिकापुर
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत से जुड़े हुयें मुझकों लगभग दो साल से ज्यादा समय हो गयाहै| आद. गुरुदेव बुलाया जी ने मुझको इस पटल से जोड़ा था. उनको मैं बहुत बहुत धन्यवाद देती हूँ उन्होंने मुझकों इस पटल से जोड़ा,आज मैं इस पटल पर जुड़कर बहुत प्रसन्नता का अनुभव करती हूँ| इस पटल के माध्यम से बहुत कुछ सीखने को नित्य ही मिलता है सबसे बड़ी बात सब कार्य एक नियम और सु समायोजित तथा अनुशासन के नियमों का पालन करतें हुयें क्रियान्वित होता है| पटल की अपनी एक मर्यादा है| पटल पर बिषय गत रचनाओं की सराहना, समीक्षा, संशोधन सुधारका्र्य नित्य ही बड़े ही सुन्दर ढ़ंग से किया जाताहै| पपटल पर सभी सृजनकार एक से बढ़कर एक है , कई गुणी विद्ववत तो हर विधा में अपना वर्चस्व रखते है ,और बहुत ही निष्ठा से अपनी रचनाएँ लिखते है |माँ शारदे को समर्पित उनकी लेखनी एवं भाव को नमन करती हूँ| उनके सानिध्य में सीखना लिखना मेरा सौभाग्य है। पत्रिका विमोचन में सभी रचनाकारों को साथ लेकर हीआगे लेकर चलते है। काव्य गोष्ठी की समय सारणी की व्यवस्था की तो जितनी प्रशंसा की जाय कम है, सभीके लिए सुविधा के साथ साथ मैं पटल के उज्ज्वल भविष्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ। एवं सभी समूह साथियों गुरुजनों को बधाई व शुभकामनाएं देती हूँ। सबके साथ सबका विकास, निश्चित रूप से जन चेतना मंच जन जन में चेतना ही जगा रहा हैं|जथा नाम तथा गुण की उक्ति पूर्ण तय साकार परिलक्षित होती है| पुनः सभी को बधाई देती हूँ, कि हमारा यह पटल दिप्तिमान सूर्य की रश्मियों सा जगत में अपना आलोक फैला साहित्य उजास से जग को भर दें|
आशा बुटोला "सुप्रसन्ना", बागेश्वर उत्तराखण्ड
कहा गया है 'साहित्य समाज का दर्पण है' क्योंकि किसी भी काल के साहित्य में उस कालखंड के समाज की, संस्कृति की एवं कलाओं की एक अनुपम छवि होती है| विश्व जन चेतना ट्रस्ट भी उसी दर्पण में से एक है, जो वर्तमान समाज को, संपूर्ण भारत की संस्कृति को, कला एवं सामाजिक परिपेक्ष को परिलक्षित करता है| मुझे इस ट्रस्ट से जुड़े अधिक समय तो नहीं हुआ है, परंतु मेरे परिचित मित्रों के द्वारा मुझे समय-समय पर इस ट्रस्ट द्वारा होने वाली साहित्यिक गतिविधियों की जानकारी प्राप्त होती रहती है| वैसे तो मैं विज्ञान की विद्यार्थी रही हूं, परंतु साहित्य में बचपन से मेरी गहरी रुचि रही है| इसलिए जब भी अवकाश मिलता है कुछ ना कुछ लिखने का प्रयास करती रहती हूं| इसी कारण इस संस्था से जुड़ने का अवसर भी प्राप्त हुआ| इस संस्था में सीखने के लिए कई प्रकार का ज्ञान है |यहां के महान कलमकारों से जुड़ कर ,उन्हें पढ़कर, तथा सुनकर मुझे बहुत कुछ सीखने को प्राप्त हुआ और निरंतरता बनी रहेगी| मैं साहित्य, व्याकरण, छंद, अलंकार व विधाओं का अधिक ज्ञान नहीं रखती, मन में उठने वाले भावों को कलमबद्ध करती रहती हूं, परंतु इस संस्था में सधे हुए रचनाकारों की रचनाओं को पढ़कर मुझे बहुत अधिक सीखने का अवसर प्राप्त हुआ है तथा भविष्य में और अधिक सीखने का प्रयास करती रहूंगी| मैं धन्यवाद करना चाहती हूं इस संस्था का जहां मेरी जैसे साहित्य का सामान्य सा ज्ञान रखने वाले व्यक्ति की रचनाओं को पढ़ा जाता है तथा समीक्षा करके उसमें अपेक्षित सुधार किया जाता है, प्रत्येक विषय पर लिखने का अवसर प्रदान किया जाता है| अंत में मैं ईश्वर से तथा मां शारदे से प्रार्थना करती हूं कि इस संस्था का गौरव सदैव वृद्धि करें तथा विश्व पटल पर इसका प्रकाश सदैव अपनी गरिमामय उपस्थिति बनाए रखें तथा मुझ जैसे अनेक साधारण व अनाम व्यक्तियों को विश्व पटल पर एक नाम व पहचान दिलाता रहे| यह परिवार निरंतर वृद्धि करें एवं साहित्य से समृद्ध रहे|
डॉ सुशील शर्मा
विश्व चेतना ट्रस्ट भारत -साहित्य की सेवा में सतत प्रयत्नशील संस्था
विश्व जन चेतना ट्रस्ट में साहित्य यात्रा के पढ़ावों का संस्पर्श हुआ है इसके रचनात्मक लेखन में स्थायी महत्व के पक्षों यथा मूल्य, संस्कृति, देश, राष्ट्र, मानवता और परंपरा पर प्रकाश डाला जाता है। इसी तारतम्य में समस्त पक्षों पर एकत्र विचार करने के लिए इस पटल पर साहित्य संवाद करवाये जा रहें है ये अपने आप में दर्शाता है कि विश्व चेतना ट्रस्ट साहित्य की सेवा में अपना अमूल्य योगदान दे रहा है । सोशल मीडिया की आभासी दुनिया की साहित्य ने हमेशा बुराई की है उसके मूल में शायद एक पूर्वाग्रह ही था या नई तकनीकी से अपरिचत होने का एक बहाना । आज वह अपरिचय कम हुआ है। इस हेतु की प्राप्ति के लिए विश्व जन चेतना ट्रस्ट सतत प्रयत्नशील है। आदरणीय दिलीप जी। आदरणीय ओमप्रकाश जी, श्रीमती सुशीला धस्माना जी, प्रिय नीतेंद्र और हम सभी सुधि साहित्यकार सतत प्रयत्नशील हैं कि साहित्य को साहित्य की तरह पढ़ा और लिखा जाए न कि उसे अपने ऊपर और दूसरों के ऊपर थोपा जाए। जब आप सचेत ,सादगी और वास्तविकता से लिखते हैं, तो आपके पास उस रोशनी को अपने पाठक के ह्रदय में सम्प्रेषित करने की क्षमता होती है। वह जो चित्र आप अपने लेखन से चित्रित करते हैं, उसमें वह अपने जीवन और सत्य को ढूढ़ने की कोशिश करता है। युवा लेखकों के लिए सलाह है की वो अपने फैसले पर भरोसा करना सीखें, आंतरिक स्वतंत्रता सीखें, उस समय भरोसा करना सीखें जब वो बुरे दौर से गुजर रहे हों।
नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत', छतरपुर, मध्यप्रदेश
जन चेतना, हर वेदना
मित्रों आप सभी से यह बात बताने जा रहा हूँ।कि जो मेरे साहित्यिक जीवन की शुरुआत हुई थी। शुरुआती दौर में जो आज विश्व जनचेतना ट्रस्ट है वह जनचेतना सांस्कृतिक साहित्यिक समिति हुआ करती थी। जिसको अन्य प्रदेशों में विस्तार हेतु ट्रस्ट बनाया गया और लगभग 5 से 6 प्रदेशों में इसकी इकाइयां गठित है।जो साहित्य के क्षेत्र में सामाजिक क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं।और आदरणीय संस्थापक महोदय दिलीप कुमार पाठक सरस जी से मैं छंद गुरु आदरणीय शैलेंद्र खरे सोम जी के माध्यम से इसमें जुड़ा और जुड़ करके मुझे लगा कि वास्तव में काव्य की आराधना,साधना,वंदना करना है और आगे कुछ बनना है तो इसमें बहुत ही विद्वान लोग शामिल हैं।जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं उसी को अनवरत बढ़ाते हुए हम सभी बहुत कुछ सीख चुके हैं और सीख रहे हैं।और यह ट्रस्ट हमारा परिवार है और ट्रस्ट के सभी बंधु व कार्यकारी सदस्य हमारे परिवार का हिस्सा है। बिहार इकाई के प्रदेश अध्यक्ष पंडित सुमित शर्मा पीयूष जी, उत्तराखंड इकाई से आ० ओमप्रकाश फुलारा जी, महाराष्ट्र इकाई से आ० शंकर केहरी जी, छत्तीसगढ़ इकाई से आ० अरविंद सोनी सार्थक जी व साथ ही साथ उत्तर प्रदेश इकाई से हमारे तमाम सभी साहित्यकार बंधु जो कि इसमें अपनी अनवरत सेवाएं दे रहे हैं।और सबसे प्रभावशाली जिला इकाई वाराणसी उत्तर प्रदेश वास्तव में एक विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ने वाले इस ट्रस्ट का मैं सदस्य हूँ मैं अपने आप को बड़ा गौरवान्वित महसूस करता हूँ।कि मुझे ट्रस्ट ने प्रदेश अध्यक्ष मध्य प्रदेश इकाई का व मुख्य प्रवक्ता का कार्यभार दिया है।इसी के साथ-साथ संचालन का भी कार्य आप सभी के समक्ष करता रहता हूं आप सभी का स्नेह है प्रेम दुलार यूं ही बना रहे आप सभी का पुनःहार्दिक आभार। धन्यवाद
रेखा जोशी, नई दिल्ली।
हिंदी को विश्व भर में"गौरवशाली सम्मान दिलाने वाली इस "संस्था"और इसके समस्त पदाधिकारियों को मेरा सादर प्रणाम है। सभी गुणी पदाधिकारी अपने -अपने कार्य क्षेत्र में अपने कार्य के प्रति हमेशा सक्रिय रहते हैं। संस्था की प्रत्येक गतिविधि पर निष्पक्ष निष्ठापूर्वक कार्य करते हुए, संस्था को संचालित कर रहे हैं। "विश्व जनचेतना ट्रस्ट"भारत द्वारा संचालित हो रहा "जय-जय हिंदी"पटल (परिवार) की मैं भी सदस्या हूं। जिसमें नियमित रूप से दैनिक लेखन गतिविधियों में शामिल होकर अपने को पहचानने का अवसर प्राप्त होता है। "यह पटल वह सरिता है, जिसमें बहती अमृत रसधार है। नियमित करते स्नान जिसमें, नित्य कवि/साहित्यकार हैं। ज्ञान ज्योत से मिटे अन्धकार है, प्यारा"जय-जय हिंदी परिवार है"। नियमित रूप से दैनिक लेखन में प्रतिदिन अलग -अलग विधाओं में लेखन का अवसर प्राप्त होता है,जिसकी समीक्षा वरिष्ठ साहित्यकारों के द्वारा की जाती है, जिससे हमैं अपने सृजन में और अधिक सुन्दरता लाने के अवसर प्राप्त होते हैं।हम पुनः सीखकर सुधारने का प्रयास करते हैं। सभी रचनाकारों का प्रोत्साहन एवं मनोबल बढ़ाने हेतु संस्था द्वारा "दैनिक सम्मान"से संचालक,समीक्षक, श्रेष्ठ रचना एवं उदीयमान रचनाकारों को सम्मानित किया जाता है। संस्था द्वारा समय-समय पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है, संस्था की अपनी बेवसाइट बन गई है जो बेहद सराहनीय है। आ०संस्थापक महोदय "सरस"जी, आ०ब्यवस्थापक महोदय "प्रफुल्ल"जी, आ०अध्यक्षा महोदया "मुस्कान"दीदी जी, आ० अलंकरण प्रमुख महोदय "पीयूष"जी, आ०संचालक महोदय एवं कानून ब्यवस्था मंत्री महोदय और अन्य सभी पदों पर आसीन सभी पदाधिकारियों के सम्पूर्ण सहयोग से संस्था ऊंचाई की ओर अग्रसर है।"ई बुक"और "एक कदम और"पत्रिका के माध्यम से साहित्य की सीढ़ियां चढ़कर संस्था "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत"विश्व भर में अपनी एक अलग पहचान कायम करें। इन्हीं मंगल शुभ कामनाओं के साथ मैं धन्यवाद देती हूं,आ०फुलारा जी को। जिनके माध्यम से मुझे जय -जय हिंदी पटल में जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। चौदह फरवरी दो हजार बाईस मात्र दो महीने से भी कम समय में मुझे अधिक से अधिक सीखने को मिला है।दो बार मुझे दिवस संचालन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अलग -अलग विधाओं में रचनाएं एवं लेखन कार्य में संस्था द्वारा दैनिक सम्मान भी दिया गया है। संस्था द्वारा आयोजित अखिल भारतीय आॅनलाइन कवि सम्मेलन में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। सभी रचनाकारों से ज्ञान प्राप्त होता है, अपनी लेखनी में त्रुटियों से अवगत होकर सुधार का मौका मिलता है। साहित्य के इस पावन मंच को सादर नमन करती हूं।
डॉ०सन्तोष कुमार सिंह 'सजल', जवाहर नवोदय विद्यालय,कन्नौज, (भदोही,उत्तर प्रदेश)
मेरी लेखनी ने कहा
विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत भारत की एक अनोखी और अनूठी संस्था है जहाँ सभी साहित्य-साधक ऐसे साहित्य-साधना करते हैं जैसे किसी परिवार के सभी सदस्य घर के मंदिर में पूर्ण समर्पण और श्रद्धा के साथ भाव विभोर हो जाते हैं । यह संस्था समय से भी तीव्र गति से विश्व साहित्याकाश में देदीप्यमान नक्षत्र की भाँति प्रकाश बिखेर रही है और सभी साहित्यिक पथिक अपने गंतव्य तक इसी प्रकाश के सहारे पहुँच रहे हैं । अल्प काल में संस्था ने जो उड़ान भरी है इसका श्रेय ऊर्जा के स्रोत आदरणीय श्री दिलीप पाठक 'सरस' जी (संस्था के संस्थापक) एवं उनके ऊर्जावान पूर्ण समर्पित पदाधिकारी गण को जाता है जिन्होंने बिना थके रात-दिन कदम से कदम मिला कर सतत हिंदी सेवा पथ पर कदम ताल किया है और सतत कर रहे हैं। अनेक बार मैंने स्वयं यह देखा है कि जिन कार्यों को करने के लिए साधारणतया एक-एक महीने लग जाते है उन कार्यों को कुछ गुणीजन एक दिन में करके सभी को हस्तप्रभ कर देते हैं और जिन लोगो ने ये कार्य होते स्वयं नहीं देखा है वे इसे अतिशयोक्ति मान बैठते हैं। संस्था ने कुछ ही दिनों में वेब साइट, फेसबुक पेज ,ट्वीटर, यूट्यूब चैनल ,त्रैमासिक पत्रिका , अनेक साझा-संकलन ,एकाधिक आभासी साहित्यिक पटल, अनेक काव्य-गोष्ठी जैसे महत्त्वपूर्ण कदम सफलता पूर्वक उठाए हैं ।अपने देश के कई प्रांत के साहित्यकार इस संस्था के माध्यम से मातृ-भाषा हिंदी की सेवा कर रहे हैं।इसके साथ-साथ संस्था विदेशों में भी अपने पांव पसार चुकी हैं और अंतरराष्ट्रीय काव्य गोष्ठी भी करवाई है आज अनेक विदेशी हिंदी-प्रेमी हिंदी-साधक हिंदी को अपने साध्य तक पहुंचाने के लिए विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत को अपनी सेवा दे रहे हैं। इस संस्था की एक खूबसूरत और आकर्षक पहलू यह भी रहा - संस्था के आभासी पटलों पर जब परस्पर संवाद को पढ़ते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि समस्त जगत के मधुर-शहद को पान करके सब लिख रहे हैं ऐसी आत्मीयता, ऐसा अपनापन, ऐसी शालीनता, ऐसा समर्पण, ऐसा सम्मान, ऐसा रिश्तों का पनपना, ऐसी ऊर्जा,ऐसी सीखने की ललक, छोटो का बड़ों के प्रति सम्मान, बड़ों का बड़प्पन, छोटो के प्रति स्नेह ...........।।
विशेष आकर्षण- भिन्न-भिन्न विधा में निपुण साहित्यकारों की उपस्थिति, प्रसिद्ध आलोचक और समीक्षक की उपस्थिति, छंद गुरु की उपस्थिति, हिंदी शिक्षाविद् की उपस्थिति,पत्रिका में बाल स्तंभ का समायोजन ,प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए परीक्षा-सामग्री तैयार करने की योजना । हृदय तो यही कहता है कि संस्था ,संस्था के पदाधिकारियों एवं संस्था से जुड़े मातृ-भाषा हिंदी के सभी सपूतों की अहर्निश प्रशंसा करता रहूँ । संस्था के उज्ज्वल भविष्य की कामना सहित
“रश वर्मा” मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश )
विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत के सभी बंधुओं को हार्दिक अभिवादन करती हूँ.
ईश्वर ने हम सभी को मन मस्तिष्क तथा असीमित विचार प्रदान किए हैं हमारे मस्तिष्क में प्रति पल विचार चलते ही रहते हैं तथा जितनी तीव्रता से ये बनते है उसी तीव्रता से अनेक बार विचार म्रत भी हो जाते हैं किंतु कुछ मनुष्य इन विचारों को अमिट बनाने के लिए स्मृति के रूप में सम्हालने के लिए काग़ज़ और कलम का सहयोग लेते हैं तथा उनको अपने शब्दों में लिखते हैं किन्तु अनेक लोग एसे भी होंगे जिनके विचार मात्र डायरी या काग़ज़ पर ही रह जाते हैं उनको प्रकट करने के लिए कोई मंच नहीं मिलता ।
मैं भाग्यशाली हूँ जो मुझे विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत का अंग बनने का अवसर प्राप्त हुआ और अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए एक मंच एक सहयोगी समूह मिला मैं आभारी हूँ विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत के सहयोगी सभी बंधुओ की जो मुझे निरंतर अपने विचारो को शब्दों में लिखने के लिए प्रेरणा देते हैं. यह मंच सदैव ही नवीन प्रतिभाओं को बिंदु से सिंधु बनाने के लिए प्रयासरत है और भविष्य में भी रहेगी इसी शुभकामना के साथ मैं “रश वर्मा” मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश )
ब्रजेश त्रिवेदी
विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत साहित्य के आकाश में ध्रुव तारा बनकर संपूर्ण साहित्य जगत को आलोकित कर रहा है ।
यहां पर भारतवर्ष के सुप्रसिद्ध समर्पित सुधि स साहित्यकार विराजित है । जो नित्य नवल साहित्य का पूजन करते हुए माँ शारदे की आराधना वंदना कर रहे हैं और सप्त ऋषि समाज को सकारात्मक दिशा प्रदान कर रहे हैं।
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के पटल पर सदैव ही एक लघु भारत के दर्शन होते हैं जिसमें विविधता है लेकिन उतनी ही एकता भी साथ में दिखाई देती है । पटल के प्रशासक मण्डल सदैव ही नवोदित सुसाहित्यकारों को ऊर्जा प्रेरणा आशीर्वाद प्रदान करते हुए सहज वातावरण में साहित्य की धारा प्रदान करते हैं ।
आप सभी के मार्गदर्शक साहित्य को उसका सही स्थान दिलाने का प्रयास कर रहे हैं । हम सब बड़े ही भाग्यशाली है कि हम सब विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत के सदस्य हैं और स्वयं को इस पटल से जुड़कर गौरवान्वित अनुभव करते हैं ।
साहित्य की यह पावन धारा भारतवर्ष ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में भारतीय हिंदी साहित्य का नाम ऊंचा करते रहे यही हमारी शुभकामनाएं हैं
मुनीषा यादव
जैसा कि नाम से ही विदित होता है विश्व जनचेतना अर्थात समस्त संसार के प्राणियों में चेतना जगाने वाला, आन्तरिक शक्ति से अवगत कराने वाला। ऐसा ही कुछ चमत्कार मेरे जीवन में हुआ।
मुझे विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत से जोड़ने वाले डॉ० पंकज कुमार शुक्ला "प्राणेश" जनपद देवरिया के रहने वाले हैं। उन्होंने ही मेरा संपर्क आ. ओम प्रकाश फुलारा जी से करवाया। उसके बाद मेरे कदम आगे बढ़ने लगे। मैं विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के इस विशाल परिवार में अपना स्थान बनाने में कामयाब रही। मैं अधिक समय नहीं दे पाती कुछ अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के कारण। लेकिन जब भी सम्भव होता है मैं अपनी सहभागिता निभाने की पूरी कोशिश करती हूँ। विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत ही एक ऐसा परिवार है जहाँ किसी के भी साथ भेदभाव नहीं किया जाता। सभी के साथ ससम्मान उचित व्यवहार किया जाता है। मेरी लेखनी भी आज तक विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के लिए ही चली है और आगे भी चलती रहेगी। जय जय हिंदी पटल व जय जय चित्रशाला पटल पर उपस्थित होते ही एक अपनेपन का अहसास होता है जो अन्यत्र किसी पटल पर नहीं होता। मैं ईश्वर से यही कामना करती हूँ कि हमारा यह परिवार विश्व का सबसे बड़ा परिवार बने और सभी ऊँचाइयाँ बोनी हो जाएं। सभी विश्व बन्धुत्व की भावना से अपने अपने कार्यों का निर्वहन करें।
डाॅ.आलोक कुमार यादव
विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत साहित्य के क्षेत्र में एक मुकाम हासिल कर चुका है। हिंदी साहित्य के उत्थान उन्नति एवं विकास में विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत का अहम योगदान है। जहाँ एक तरफ विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत हिंदी साहित्य की उन्नति एवं विकास में कार्य कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ हम जैसे नवांकुर को एक साहित्यकार के रूप में स्थापित करने में लगा हुआ है। न जाने कितने ही रचनाकारों को विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत ने मंच देकर उनको परिपक्व एवं छंद विशेषज्ञ के रूप में स्थापित कर रहा है। मैंने प्रारंभिक लेखन कार्य इसी संस्था से सीखा। आज जो कुछ उम्र में लिख पा रहा हूँ, उसमें इस संस्था का अहम योगदान है। विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत के समस्त पदाधिकारियों को एक सुंदर एवं उत्तम कार्य के लिए मैं शुभकामना प्रदान करता हूँ एवं भगवान से यही प्रार्थना करता हूँ कि यह संस्था इसी तरह ऊँचाइयों को प्राप्त करे और साहित्य के क्षेत्र में उच्च स्थान प्राप्त करे।
डाॅ.आलोक कुमार यादव
एसोसिएट प्रोफेसर, विधि संकाय, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
रवि रश्मि 'अनुभूति ', मुंबई ( महाराष्ट्र )
साहित्यकारों व प्रबुद्ध रचनाकारों में चेतना जगाने वाली विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत , जय - जय हिन्दी पटल व पटल समूह के सभी सम्माननीय पदाधिकारियों , आदरणीय अधिकारीगण व आवाज़ की रूहानी, सुहानी , नूरानी दुनिया के स्नेहिल साथियों को मुंबई से रवि रश्मि 'अनुभूति ' का सादर सस्नेह नमस्कार , प्रणाम , सत् श्री अकाल । विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के जय - जय हिन्दी पटल सेजुड़कर बहुत खुशी व स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करती हूँ , क्योंकि मुझको इस पटल पर बहुत स्नेह व सम्मान मिला । मेरी रचनाओं को सराहा भी गया और कई रचनाओं के लिए मुझे सम्मानित भी किया गया । यहाँ मैंने एक - दूसरे के प्रति साथियों में प्रत्यक्ष सहृदयता , सहयोग , कर्मठता , निष्ठा , संगठन , भाईचारे , प्यार , एकता , समर्पण , सद्भावना , समता , विश्वास , समझदारी व निष्पक्ष समीक्षा व सही निर्देश देने की निरपेक्ष भावना देखी है , जो किसी भी पटल के लिए अत्यंत आवश्यक होती है और जिससे पटल की सभी साहित्यिक गतिविधियाँ बहुत ही सरल , सहज , सुघड़ व सुचारू रूप से चल रही हैं व हर कार्यक्रम के लिए सभी के उत्तरदायित्व निश्चित किये जाते हैं , जो बड़ी कुशलता से अपने अपने कर्तव्यों का प्रशंसनीय तरीके से पालन करते हैं , जैसे विषय , समीक्षा , संचालन व प्रमाण पत्र आबंटन के कार्य , ई पत्रिका प्रकाशन संपादन स. ओम प्रकाश प्रफुल्ल जी के द्वारा , लोकार्पण , आकर्षक पोस्टर , भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन व संचालन निश्चित करना , विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन करना तथा इन्हें बड़ी कुशलता व तत्परता से स. दिलीप पाठक ' सरस ' जी के निर्देशन में निभाना आदि । सभी अधिकारी , पदाधिकारी व सुधी रचनाकार बहुत ही पारंगत व हुनरमंद हैं , जिनके सान्निध्य में सभी को साहित्यिक विधाओं में बहुत कुछ सीखने को मिलता है , जिस कारण रचनाकारों को अपनी रचनाधर्मिता को बढ़ाने का बल मिलता है तथा रचनाकार उच्च कोटि का सृजन करने को प्रेरित होते हैं । मेरी दृष्टि में यह पटल एक साहित्यिक पाठशाला है , जो ज्ञान की निश्छल व पावन गंगा प्रवाहित करती है , जहाँ सभी को ही समान अवसर व सम्मान मिलता है । यह ट्रस्ट अपनी सुरभि चहुँ ओर फैला रही है । पटल रचनाकारों के सृजन रूपी यज्ञ में आहुति का काम कर अपनी यश - पताका शिखर पर फहराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है । कार्यकारिणी समिति के सभी अपना वर्चस्व रखने वाले सम्माननीय पदाधिकारियों को उनकी समर्पित व कर्मठता की भावना को सादर नमन , जो हर व्यवस्था सुचारू ढंग से करने व अलग - अलग राज्यों व दिशाओं से जुड़े सभी रचनाकारों को एक सूत्र में बाँधे रखने में कुशल व पारंगत हैं । इस पटल पर रह कर मैं अपनी बात करूँ , तो मैं कह सकती हूँ कि इस उपजाऊ भूमि पर सभी के सहयोग ने खाद का काम किया और मैं भी यहाँ बहुत लाभान्वित हुई हूँ । मुझे भी कई विधाओं की रचनाओं में सुधार करने में सहायता मिलती रही है व आगे भी मिलती रहेगी । सभ्यता व संस्कृति के पोषक व साहित्यिक विचारों के संरक्षक व नियमों के पक्के इस पटल के उज्ज्वल भविष्य , इसके संवर्धन के लिए मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ , ताकि हर कोई इससे जुड़ कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर सके तथा इस पटल का मान , सम्मान व स्वाभिमान शिखर पर विराजमान रहे ।
विभा रंजन सिंह
नाम सुना था बस , गुरुवर वत्स जी अक्सर कहते थे - जय जय हिंदी पर जाना है आपको। कभी पूछा नहीं क्या है ये। 27 अप्रैल 2021 की सुबह mo. उठाया तो खुद को विश्व जन चेतना ट्रस्ट के पावन पटल पर पाया। इतने सारे विद्वत जनों के बीच सच कहूँ तो माँ शारदे का मंदिर ही तो लगा। और चौखट पर रखा माँ दुर्गा को समर्पित पहला गीत - मेरा चंचल मन कहता है माँ, मुझे तेरी शरण में रहने दो।
और कब यह मंदिर - घर एक मंदिर में परिवर्तित हो गया पता ही नहीं चला। कलम बस उठाई ही थी करीब चार महीने पहले और धीरे धीरे बरसों पहले छूट गई हिंदी से परिचित होने लगी। जितना ज्ञान का भंडार यहाँ है उसे आत्मसात करना कदाचित संभव न हो किन्तु अभिव्यक्ति कर पाना ही सुखद अनुभूति सा लगा और यह सब संभव हो सका गुणीजनों के बीच रहकर। ज्ञान के इस सागर की कोई नदी नहीं सिर्फ एक बूंद बन पाना भी मेरे लिए गर्व की बात होगी। हिंदी और हिंदी साहित्य के क्षेत्र में पटल की भूमिका अग्रगण्य है और उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर भी।एक तरफ अनुज मनोज खोलिया जी का अनुशासन तो दूसरी तरफ हर खास मौके को और खास बनाता अनुज नीतेंद्र परमार जी का शानदार संचालन , प्रफुल्ल सर् का शानदार संयोजन और सबसे अलग पाठक सर् की दमदार आवाज। उनके आवाहन के वो शब्द मेरी सरस्वती पुत्रियाँ कहाँ हैं ऐसा लगता है सोई हुई लेखनी में भी जान डाल देंगी और कितनी प्रेरणा चाहिए नवोदितों को। साथ ही साथी रचनाकार गुणीजनों की रचनाएँ मरुभूमि में एक शीतल फुहार की तरह अप्रतिम।माँ शारदे इस पावन पटल को यूँ ही हमेशा ज्ञान पुष्प से पुष्पित व पल्लवित रखें.
सुषमा दीक्षित शुक्ला लखनऊ
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत एक गौरवशाली एवम हिंदी साहित्य को समर्पित संस्था है या यूं कहें कहे एक प्रेम एवम सम्मान भरा परिवार है, हम सब साहित्यकार जिसके अभिन्न हिस्से हैं ।
सत्य कहा किसी ने मित्रों, साहित्य समाज का दर्पण है ।
विश्व जनचेतना ट्रस्ट हमारा , हिंदी को ही अर्पण है ।
मातु शारदे के चरणों से इसका मित्रों उद्गम है ।
विनय काल से मुक्त काल तक इसमें जीवन दर्शन है ।
गीत सजल अरु देव वंदना , इसमे साहित्य है सारा ।
सृजनकार नित खोला करते , अपना साहित्य पिटारा ।
माँ वाणी का आँचल है ये , ब्रह्मा जी का है वरदान ।
विद्या का आवाह्न इसी में इसमें हैं वेदों का ज्ञान ।
मित्रों विश्व जनचेतना ट्रस्ट के समस्त पदाधिकारी गण श्री दिलीप कुमार पाठक जी ,श्री ओम प्रकाश फुलारा जी ,श्री मनोज कुमार खोलिया जी , पीयूष भइया नितेन्द्र भैया प्यारी मुस्कान दीदी समेत सभी गणमान्य विद्वदजन अत्यंत विनम्र , अनुशाषित व अपनापन रखने वाले सह्रदयता की मूर्ति हैं जो सभी साहित्यकारों का उचित मार्गदर्शन व एक दूसरे का ज्ञान संवर्धन करते रहते हैं ,जिससे इस समूह से कभी भी अलग होने का दिल नही कहता । विभिन्न प्रकार के साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से विश्व जनचेतना ट्रस्ट साहित्यकारों को एक नई ऊर्जा प्रदान करता है एवं अपने ही घर मे पराई हो चुकी हिंदी भाषा को उसका अधिकार दिलाने पर कटिबद्ध है । मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सके अपने लक्ष्य को हासिल कर सके ,इसके साथ ही इस परिवार से जुड़े सभी विद्वानों का तहे दिल से आभार प्रकट करती हूँ क्योंकि ये सभी विद्वान एक से बढ़कर एक ज्ञानी है हिंदी प्रेमी हैं एवम सहृदयी एवम अनुशाषित हैं । अनन्त शुभकामनाओं सहित आपकी सुषमा दीक्षित शुक्ला, लखनऊ .
डॉ. राजेश कुमार जैन " राज ", श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड
विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत की स्थापना आदरणीय दिलीप कुमार पाठक "सरस " जी द्वारा 27. 01. 2017 को की गई थी , जिसकी एक शाखा - जय जय हिंदी पूर्णतया हिंदी साहित्य के विकास के प्रति समर्पित है । नित्य प्रति नवीन विषय और नवीन विधाओं पर रचनाकारों द्वारा रचना धर्मिता की जाती है । प्रतिदिन नियुक्त समीक्षकों द्वारा प्रत्येक रचना की गहन समीक्षा की जाती है, और तीन सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का चयन कर उन्हें सम्मान पत्र से पुरस्कृत किया जाता है । इसी क्रम में संस्था द्वारा समय-समय पर अनेक साहित्यकारों की पुस्तकों का प्रकाशन और लोकार्पण भी भव्य कार्यक्रमों में किए जाने के साथ ही सभी रचनाकारों की रचनाओं से सुसज्जित ई बुक का प्रकाशन ओर भव्य लोकार्पण होता रहा है , सभी रचनाकारों से नित्यप्रति पटल पर होते संवादों से सभी से आत्मीय सम्बन्ध स्थापित हो गए हैं और हम सभी एक परिवार के सदस्यों की तरह एक दूसरे की रचनाओं को पढ़कर उनका उत्साह वर्धन करते हैं और यदि किसी की रचना में कोई संशोधन की आवश्यकता अनुभव होती है तो वह भी वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा संशोधित कर दी जाती है। मुझे वर्ष 2019 में संस्था के अध्यक्ष आदरणीय दिलीप कुमार पाठक सरस जी द्वारा इस पटल से जोड़ा गया था, तभी से मैं निरन्तर इस साहित्यिक मंच से जुड़ कर नित्य ही कुछ सीखने का प्रयत्न कर रहा हूँ । मुझे यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि जब मैं इस मंच से जुड़ा था तब केवल तुकांत - अतुकांत, नज़्म और गद्य ही लिखता था , किंतु आप सभी के सानिध्य में रहकर अनेक विधाओं में मैं लिखने का प्रयत्न कर रहा हूँ और आगे भी प्रयास करता रहूँगा ऐसी मैं माँ शारदे से प्रार्थना करता हूँ । मैं अनेकों साहित्यिक पटलों से जुड़ा हुआ हूँ, किन्तु मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह मंच अदभुत है , यहाँ सभी को सीखने के अनेक और निरन्तर अवसर प्राप्त होते हैं । नित्य प्रति पटल पर प्रेषित रचनाओं को पढ़कर ही मन प्रफुल्लित हो जाता है ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं , और बहुत कुछ सीखने को प्राप्त होता है। सभी साहित्यकार एक दूसरे का मार्गदर्शन करते हैं । मैं अधिक न कहते हुए इस मंच से जुड़े सभी रचनाकारों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ जिनके सानिंध्य में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला ।
गीतांजलि वार्ष्णेय'सूर्यान्जलि'
"बगिया है ये फूलों की,रंग बिरंगें फूलों की, मकरंद भरे गुणवान गुरु,सीखाते और सराहते हैं।
महक से उनकी हम सब महके, ये बगिया है साहित्यकारों की।।
विश्व चेतना ट्रस्ट मेरे सपनों को साकार किया, जिसने प्रतिभाओं को निखारा है। हर साहित्यकार चाहे नवांकुर हो या मंझा हुआ कलाकार सभी को समान सम्मान दिया जाता है।नियमों में बंधकर सब सभी साहित्यकार एक दूसरे का सम्मान करते है,ये सब सिखाया हमारे श्रेष्ठ गुरुजनों ने। आ.सरस जी,आ.फुलारा जी,आ.विश्वेश्वर शास्त्रीजी,आ.मुस्कान दीदी जी, आ.सुमित भाई जी, आ.भारत भाईजी सभी ने इस मंच को न केवल ऊँचाइयों पर पहुँचाया है,बल्कि हम जैसे नवांकुरों को बड़े प्यार से सिखाने की भी कोशिश की है ये बात अलग है मेरे जैसे विद्यार्थी कुछ पारिवारिक व्यस्तता के कारण सीखने से बचते रहते हैं।
मुझे याद है मैंने कभी कुछ दोहे,कुछ छंद लिखने की कोशिश की,में सादर आभार व्यक्त करती हूँ उन गुरुजनों को जिन्होनें मुझे पर्सनल पर उन कमियों का अहसास कराया,सुधार कर नव सृजन को प्रेरित किया,पटल पर ये महसूस न होने दिया मेरा लेखन त्रुटिपूर्ण हैं।
यहाँ समय समय पर प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है जिसमें सबको समान मौका दिया जाता है।समय समय पर पत्रिकाओं का प्रकाशन हमें नया सम्बल प्रदान करता है।श्रेष्ठजनों की प्रतिक्रिया प्रेरणा प्रदान करता है। ईश्वर मंच को इसी तरह ऊँचाइयाँ प्रदान करें हम सबको यश।।
आशा जोशी (गागरीगोल) गरुड़, बागेश्वर उत्तराखंड
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत जहाँ नित्य बहती ज्ञान गंगा, कई देश, कई रूप,कई भाषाएँ उत्सव भी रंग-बिरंगा।।
मैं बहुत ज्यादा लेखन की समझ तो नहीं रखती हूँ। लेकिन जितना भी सीखा जय-जय हिंदी पटल के सभी आदरणीय साहित्यकारों की देन है। इस पटल में जुड़ने से पहले केवल 5 कविताएँ लिखी थी, छंद बद्ध कविताएँ लिखने की समझ नहीं थी। 21 अगस्त 2020 को मैं जय - जय हिंदी पटल पर जुड़ी आदरणीय ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' जी ने मुझे समूह में जोड़ा उनका ये उपकार मुझे हमेशा याद रहेगा। फेसबुक के माध्यम से मैंने संस्था के आदरणीय संस्थापक महोदय दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी को अपनी पहली कविता भेजी उनके कहने पर ही मैं इस समूह की हिस्सा बन पाई। और मैंने देखा मेरे गरुड़ के इस पटल पर बहुत साहित्यकार बंधु जुड़े थे मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई। तत्पश्चात मुझे बहुत ही सरल स्वभाव के आदरणीय मनोज कुमार खोलिया जी ने समूह के नियम भेजें। मैंने लिखना भी अगस्त 2020 से ही प्रारंभ किया। मुझे जय-जय हिंदी पटल में दिवस के अनुसार रचनाएँ इस तरह लिखनी होती हैं करके बताया तो मैं थोड़ा घबरा गई थी क्योंकि मैंने उससे पहले कभी कोई दोहा, चौपाई इत्यादि नहीं लिखा। आज मैं पटल में जुड़े सभी विद्वान, विदुषी आदरणीय सरस्वती पुत्र,पुत्रियों की कृपा से थोड़ा बहुत लिख लेती हूँ। विनय काल और विषय काल में जो आदरणीय समीक्षक महोदय द्वारा हमारी लेखनी में जो कमियाँ रह जाती हैं उसे दूर कर हमारे सृजन में निखार लाने का कार्य होता हैं जो मेरे जैसे नवोदितों के लिए अमृत समान है। कभी भी कोई उत्सव मनाना हो तो जय-जय हिंदी जैसा कहीं नहीं बहुत ही सुंदर, सुव्यवस्थित,और अनुशासित कार्यक्रम चित्रशाला पटल पर होता है अनुज आदरणीय नीतेंद्र परमार 'भारत' जी का संचालन बहुत ही ऊर्जावान एवं प्रेरणादाई होता है। मैं कार्यक्रम में भले ही कभी हिस्सा ले पाती हूँ या नहीं लेकिन मैं सब का उद्बोधन लिखित हो चाहे ऑडियो रूप में उसको जरूर सुनती हूँ जब भी समय मिले। सचमुच! बहुत कुछ सीखने को मिलता है जय-जय हिंदी पटल में ऐसे ऐसे हीरे हैं जिनकी सराहना के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं है। इस समूह में एक से बढ़कर एक विदुषी आदरणीया दीदी सुशीला धस्माना 'मुस्कान' जी आदरणीया सुनंदा झां सीप जी और भी बहुत हैं, नाम लेना सम्भव नहीं है सूची बहुत बड़ी है। जो हमारे लेखनी को निरंतर प्रगति प्रदान करते हैं। एक बार पुनः आदरणीय संस्थापक महोदय दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी एवं समस्त प्रशासक मंडल के पदाधिकारियों का बहुत-बहुत आभार जो हमारी लेखनी में निरंतर सुधार हेतु तत्पर रहते हैं। उम्मीद करती हूँ आगे भी इसी तरह जय-जय हिंदी पटल ज्ञान की धारा से सराबोर होता रहे और हमारी संस्था उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर रहे।
दीप चंद्र पांडेय, बागेश्वर।
आज के इस दौर में जब चारों ओर अंग्रेजी का बोलबाला है। अंग्रेजी बोलने वाला विद्वान और भद्र पुरुष माना जाता है,तब ऐसे समय में।हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी को एक मुकाम दिलाने के कार्य में लगी हुई विभिन्न संस्थाओं में से एक अग्रणी संस्था विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत है। मैं संस्था के संस्थापक आदरणीय श्री दिलीप कुमार पाठक सरस जी और उनकी पूरी टीम को हार्दिक साधुवाद देना चाहता हूँ जो छोटे बड़े सभी रचनाकारों की रचनाओं की समीक्षा कर उनका मार्गदर्शन कर उनकी रचनाओं में निखार लाने का गुरुतर कार्य कर रहे हैं। लगभग दो वर्ष पूर्व कोरोना काल में मंच के व्यवस्थापक एवं राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष आदरणीय ओम प्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल'जी द्वारा मुझे भी इस पटल पर जुड़ने का अवसर प्रदान किया गया। उस समय तक मैं कविता के नाम पर टूटी फूटी तुकबंदियाँ किया करता था। कहने का आशय है कि मैं शून्य था।किन्तु, संस्था से जुड़ने के पश्चात आज मैं समझता हूँ कि मेरी उपलब्धि 15-20 प्रतिशत हो गई है। इस उपलब्धि के लिये मैं संस्था की विद्वान मंडली का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। आशा करता हूँ इसी प्रकार मुझे और मेरी रचनाओं को आशीर्वाद प्रदान कर मेरी कमियों में सुधार कर मुझे अनुग्रहीत करते रहेंगे। अंत में हमारी यह संस्था दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करते हुए विश्व में हिन्दी को सम्मान पूर्ण स्थान दिलाने के भगीरथ प्रयास में अवश्य सफल होगी, यही भगवान से करबद्ध विनती है।
बृजमोहन श्रीवास्तव
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत द्वारा साहित्य के क्षेत्र ,संस्कृति के क्षेत्र , संस्कार प्रदान करने में अनवरत प्रयास किया है अप्रतिम अप्रत्याशित है इसके संस्थापक आ. दिलीप कुमार पाठक सरस जी , आ.कौशल किशोर आस दादा द्वारा यह परम पुनीत कार्य आरंभ किया । मैं इस मंच का सक्रिय सदस्य हूँ । फिलहाल व्यस्तता के कारण कम समय दे पाता हूँ । जय जय हिन्दी और काव्य चित्रशाला मंच , फेसबुक और व्हाट्सएप पर दोनो मंच साहित्यिक गंगा में अनवरत स्नान कराकर हमारी रचनाओं को पावन बना रहे है । मंच के द्वारा प्रत्येक वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय कविसम्मेलन का आयोजन भी किया जाता है जिसमें नवांकुरों को मंच पर काव्यपाठ का मौका दिया जाता है । इस संस्था द्वारा आयोजित कविसम्मेलनों में मुझे भी भागीदारी का अवसर मिला । इस मंच के द्वारा ई- पत्रिका और साझा संकलन भी मुद्रण कराया जाता है । जो एक अकल्पनीय कार्य है । इस मंच पर एक से बढ़कर एक साहित्यकार सृजन करते है और उनकी रचनाओं को जन जन तक पहुँचाने का ध्येय इस मंच का प्रथम उद्देश्य है । साहित्य के अलावा यह मंच समाज सेवा के क्षेत्र में अग्रणी है इसमें आ. डाँ. राहुल शुक्ल साहिल जी , ओमप्रकाश प्रफुल्ल फुलारा जी , आ. नीतेंद्र भारत , छंद गुरु आ. शैलेन्द्र सोम जी , आ. हरीश बिष्ट जी , और भी कई काव्य के जानकार मौजूद है जो काव्य और साहित्य की बारीकियों से रोजाना रुबरु कराते है ।
मुझे इस मंच के बारे कुछ लिखना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है । क्यों कि इस मंच में व्यक्ति नही व्यक्तित्व मौजूद है । यह मंच दिनो दिन नये आयाम छुऐ यही शुभकामनाओं के साथ सभी गुणी जनों को बहुत बहुत बधाई नमन वंदन अभिनंदन जय विश्वजनचेतना ट्रस्ट जय माँ शारदे
इं० संतोष कुमार सिंह, मथुरा
विश्व जन चेतना ट्रस्ट, संस्था नहीं परिवार है
मैं कई साहित्यिक पटलों से जुड़ा हुआ हूँ। विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत द्वारा संचालित पटल जय जय हिंदी से सबसे अंत में जुड़ा हूँ।
इस पटल से जुड़ कर मैंने पाया है कि इसके सभी सदस्य ऊर्जावान हैं और समर्पण की भावना से ओत-प्रोत हैं। दिल में नित्य नया करने की उमंग है। कवि सम्मेलनों का आयोजन, ई पत्रिकाओं का प्रकाशन और विमोचन इस तरह होता है जैसे किसी मंच पर आयोजन हो रहा हो। प्रियवर नीतेन्द्र परमार द्वारा श्रेष्ठ संचालन, श्री प्रफुल्ल जी द्वारा पत्रिका का प्रकाशन व प्रमाण बनाना, श्री खोलिया जी द्वारा अनुशासन का दायित्व निभाना, आदरणीया सुशीला धस्माना जी का श्रेष्ठ निर्देशन इस पटल को ऊँचाइयों पर ले जा रहा है। वास्तव में यह एक साहित्यिक ट्रस्ट नहीं, एक परिवार है जो मिल जुल कर अपने कार्यों को संपादित कर रहा है। रचनाकारों को नित्य प्रमाण पत्र देकर सम्मानित करना श्रमसाध्य कार्य है। ऐसा कार्य नियमित करना बच्चों का खेल नहीं है। ऐसी व्यवस्था किसी भी पटल पर उपलब्ध नहीं है। वास्तव में यह पटल हिंदी की सेवा सच्चे मन और समर्पण भाव से कर रहा है। इसका लाभ मुझ जैसे रचनाकारों को साहित्यिक ज्ञान बढ़ाने के लिए मिल रहा है। मैं इस पटल के सभी सम्माननीय पदाधिकारियों की भूरि-भूरि प्रसंशा करता हूँ और उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूँ। जय हिंदी, जय जय हिंदी
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