Registered under 12A
Regd. No. : AACTV9034BE20221
u/s 02-Sub clause (vi) of clause (ac) of sub-section (1) of section 12A
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u/s 12-Clause (iv) of first proviso to sub-section (5) of section 80G
Dilip Kumar Pathak Saras (Founder)
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
सभी सुप्रसिद्घ साहित्यकार बंधुओं व सुधी पाठकगणसाथियों को यथोचित अभिवादन! अग्रजों / अग्रजाओं को प्रणाम, अनुजों / अनुजाओं को सस्नेह दुलार, अपने जैसे साथियों को हृदय से प्यार | विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत की उत्पत्ति का संस्मरण अति रोचक व कौतूहलपूर्ण है | आइए संक्षेप में विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत की उत्पत्ति व विकास के विषय में जानें |
यह बात सन् 2012 की है जब एक काव्य गोष्ठी में अपने गुरुजी बीसलपुर के वरिष्ठ प्रख्यात साहित्यकार आ. निरंजन स्वरूप नगाइच 'निशंक जी से सुना कि बीसलपुर में हिंदी सेवा संघ नाम की एक संस्था हुआ करती थी, पदाधिकारियों की निष्क्रियता के अभाव में व साथियों की उदासीनता के कारण संस्था के पंजीयन का नवीनीकरण न हो सका | संस्था बंद पड़ी है | यह सुनकर मुझे बीसलपुर में एक पंजीकृत साहित्यिक संस्था की कमी खली | कुछ दिन बाद बीसलपुर के साहित्यकार आ. सुरेन्द्र कुमार मिश्रा मधुर जी (कीर्तिशेष) ये मुलाकात की एवं अपने मन की बात रखी | उन्होंने कहा इस निमित्त एक गोष्ठी का आयोजन हो जिसमें बात रखी जाए | आर्यासमाज मंदिर में गोष्ठी तय हुई | सभी साथियों के मध्य बात रखी गयी | तय यह हुआ कि सभी साथी 10₹ मासिक दिया करेंगे | माह में एक काव्य गोष्ठी होगी | संस्था का नामकरण प्रेरणा साहित्यिक संस्था पड़ा| पाँच छः माह बाद यह संस्था भी खींचातनी पद प्रतिष्ठा व निष्क्रियता की शिकार हो गयी |
मन द्रवित हुआ पर कुछ करने की ललक व्यक्ति को चैन से नहीं बैठने देती | सन् 2013 में आ. विजय कुमार सक्सेना जी (कीर्तिशेष) ये इस विषय में चर्चा हुई | वह सहायक निदेशक थे |तो पंजीकरण में धन की कमी तो नहीं पड़ने देंगे, ऐसा मेरा मन में विश्वास था |बात को बल के साथ स्वीकृति मिली | तय यह हुआ कि एक वर्ष में संस्था का विस्तार हो व ख्याति मिले, पंजीकरण का समस्त खर्च आ. डॉ. विजय सक्सेना जी उठायेंगे | संस्था का नाम काव्यांजलि साहित्यिक मंच पड़ा | आ. विजय सक्सेना जी संस्थापक संरक्षक व मैं अध्यक्ष बना| एक वर्ष के कड़े परिश्रम के बाद संस्था ने अपनी एक विशेष पहचान बीसलपुर में बनाई, बीसलपुर के सभी साहित्यकार जिस संस्था से जुड़े | कई कार्यक्रम हुए | जिसे वार्षिक कोलाज के रूप में संयोजित व प्रकाशित किया गया | इससे पूर्व डॉ. विजय सक्सेना जी द्वारा बीसलपुर की इन्द्र सभा एक काव्य का साझा संकलन निकला | काव्यांजलि के विशेष कार्यक्रम कीर्तिशेष साहित्यकारों की स्मृति में आयोजित किए जाते थे |
इस प्रकार संस्था को दो वर्ष बीत गए | एक कार्यक्रम में आ. विजय सक्सेना जी से संस्था के पंजीकरण कराने के निमित्त बात रखी पर टाल गए | मुझे ऐसा लगा कि वह पंजीकरण कराना ही नहीं चाहते | एक दिवस उनके घर गया, तो बातों ही बातों में बोले पंजीकरण कराने से कोई फायदा नहीं | दौड़ भाग ज्यादा है | मैंने कहा दौड़ भाग मैं कर लूँगा पर धन की आप व्यवस्था करें | हाँ ठीक है कहकर बात समाप्त हुई | फिर प्रतीक्षा करनी थी | कुछ समय बाद एक कार्यक्रम होना सुनिश्चित हुआ | उसी कार्यक्रम में मैं अपना त्याग-पत्र लेकर पहुँच गया | दो बातें मैंने रखीं ~ या तो आपका पंजीकरण कराने का समयावधि सहित लिखित साक्ष्य या मेरा त्यागपत्र स्वीकार करें | उन्होंने पंजीकरण कराने से मना कर दिया | मैंने त्याग पत्र दिया | तुरंत अध्यक्ष पद के लिए आ. सुधाकर त्रिपाठी स्पर्श जी तैयार हो गए | मौके पर ही उन्होंने स्पर्श जी को मौखिक रूप से अध्यक्ष घोषित कर दिया |
प्यास जब तीव्र रूप धारण करती है तो छटपटाहट होना स्वाभाविक है | यही मेरे साथ हुआ | उस दिन मैं सबसे ज्यादा आहत हुआ था | क्योंकि मुझे ढाई वर्ष की साहित्यिक तपस्या का यह फल मिला था | बालबुद्धि थी | जुनून भी था | मेरी तपस्या का यह फल नहीं हो सकता | मैंने दृढ़ संकल्प लिया कि जब तक मैं बीसलपुर को एक पंजीकृत साहित्यिक संस्था नहीं दे दूँगा, तब तक चैन से नहीं बैठूँगा |
बात सन् 2015 की है जब मुझे व्हाट्सएप नूतन साहित्य कुञ्ज (संस्थापक ~ अवधेश अवध जी) में मध्य प्रदेश पन्ना के प्रिय अनुज आशीष पाण्डेय जिद्दी ने जोड़ा था| नूतन साहित्य कुञ्ज से कुछ साहित्य की विशेष समझ विकसित हुई | आ. रणवीर सिंह अनुपम जी आ. अवधेश अवध जी, आ. अनुभा मुंजारे जी, ( जिन्हें मैं भाभीश्री कहता था ) प्रिय अनुज आशीष पाण्डेय जिद्दी जी, आ. राजवीर सिंह जी | आदि के सानिध्य में कुछ विशेष ऊर्जा का संचार हुआ |
इधर बीसलपुर की धरती को पंजीकृत संस्था देने का जनून, सब साथ-साथ चल रहा था | एक दिन आ. श्रीकांत शर्मा निश्छल (कीर्तिशेष) के घर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ | गोष्ठी का समापन पर मैंने फिर संस्था की बात छेंड़ी | फिर चर्चा पर चर्चा होने के उपरान्त जब सब चले गए तो मैंने व आ. श्री कांत निश्छल जी व उनके बड़े बेटे ने संस्था का नामकरण किया, हालाकि नाम बड़ा था जो मुझे खटक रहा था पर मैं किसी के मनोबल को गिराना नहीं चाहता था | नाम रखा गया ~ जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति बीसलपुर पीलीभीत उ. प्र.| जून 2016 में इसका पंजीयन पदाधिकारियों व सदस्यों से 500₹ का आर्थिक सहयोग से हो गया | इस कार्य में धन सहयोग एकत्रित करने में दिन रात लगा | संस्था के माध्यम से कई साहित्यिक कार्यक्रम हुए | आ. निरंजन स्वरूप निशंक जी को संरक्षक, आ. श्रीकांत शर्मा निश्छल जी को अध्यक्ष और मुझे सचिव बनाया गया व आ. कौशल कुमार पाण्डेय आस दादाश्री को मार्गदर्शक के रूप में |
जब संस्था का रजि. देखा तो कई सदस्य ऐसे थे जो साहित्यकार न थे पर आ. श्रीकांत शर्मा जी के परिचित थे | पर इस कार्य से मुझे अवगत क्यों न कराया गया, यह बात मस्तिष्क में कौंधी | खैर बात आई गई हो गई |
संस्था को पहचान मिल चुकी थी ~ जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति ~ 226 | संस्था दिन दूनी रात चौगुनी विकास करने लगी |
इधर आभासी दुनिया में एक नया मोड़ आया | आ. राजवीर सिंह जी ने नूतन साहित्य कुञ्ज के ऊर्जावान साथियों को एकत्रित कर सन् 2016 के अंत में एक नया साहित्यिक संगठन तैयार किया | जिसमें आ. राजवीर सिंह जी अध्यक्ष, आ. डॉ. राहुल शुक्ल साहिल दा श्री उपाध्यक्ष, आ. नित्यानंद पाण्डेय जी संस्था शिरोमणि सलाहकार, आशीष पाण्डेय जिद्दी जी अनुशासन प्रमुख, संजीत सिंह सह सचिव, प्रिय अनुज सुमित शर्मा पीयूष जी अलंकरण प्रमुख मनोनीत हुए | संस्था का शुभारंभ हुआ, तेजी के साथ संस्था आगे बढ़ी | इस संस्था का नाम साहित्य संगम हुआ | इस आभासी पटल को जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति -266 से संबद्ध कर दिया गया | बाद में आ. उपाध्यक्ष महोदय डॉ0 राहुल शुक्ल साहिल दा श्री द्वारा इलाहाबाद उ प्र से साहित्य संगम समिति के नाम से पंजीकरण कराया गया | पंजीकरण के बाद संस्था विकास की बढ़ ही रही थी कि आपसी मनमुटाव होने लगे | आ. अध्यक्ष महोदय आ. राजवीर सिंह जी, जिनका साहित्यिक नामकरण मैंने मंत्र किया, की मनमानी चरम पर पहुँच गयी | एक दिन मनमुटाव के कारण अध्यक्ष महोदय द्वारा कुछ संस्था के प्रशानिक लोगों को रात में बाहर का रास्ता दिखाना मुझे खला | इनमें आ. डॉ. राहुल शुक्ल साहिल दा श्री, आ. नित्यानंद पाण्डेय मधुर दादाश्री, प्रिय अनुज आशीष पाण्डेय जिद्दी जी सम्मिलित थे |
अगले दिन रात में मेरे द्वारा आ. राजवीर सिंह मंत्र जी व उनके अन्य प्रिय सहयोगी साथियों को अहसास कराने के निमित्त मैंने उन्हें रिमूव कर दिया | कई लोगों के कहने पर, प्रिय अनुज आशीष जी व प्रिय अनुज संजीत जी द्वारा अपनी कसम देने पर मैंने उन्हें पुनः जोड़ दिया पर अपने को हमेशा के लिए रिमूव कर लिया |
जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति -226 के जय जय हिन्दी पटल का निर्माण किया गया | साहित्य संगम से निकाले गए सभी साथियों को यहाँ लाया गया | इसके निर्माण में आ. डॉ. राहुल शुक्ल साहिल दा श्री, आ. भगत सहिष्णु दादाश्री, आ. नित्यानंद पाण्डेय मधुर दादाश्री प्रिय अनुज . पं. सुमित शर्मा पीयूष जी व आ. शैलेन्द्र खरे सोम दादाश्री व मार्गदर्शक आ. कौशल पाण्डेय आस दादाश्री का विशेष योगदान रहा | धीरे धीरे जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति ने इलैक्ट्रिक मीडिया पर अपने पैर पसारना शुरू कर दिया | 21 जनवरी 2018 को तारा वैंकट लॉन बीसलपुर में भारत के कई प्रांतों के साहित्यकारों के साथ एक विशाल व भव्य कवि सम्मेलन, नंदिनी साझा काव्य संग्रह के विमोचन के साथ किया गया | विशेष बात यह रही कि निमन्त्रण देने के बाद भी आ. संरक्षक महोदय व आ. अध्यक्ष महोदय इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हुए | कार्यक्रम अपने आप में अनूठा व ऐतिहासिक हुआ, इसके साक्षी दूर प्रांतों के साथी तो बने ही पर आ. कौशल कुमार पाण्डेय आस दादाश्री व आ. राजेश मिश्र प्रयास जी विशेष रूप से बनें | जो कार्यक्रम के परिश्रम के साथी थे | इस कार्यक्रम में आ. नित्यानंद पाण्डेय मधुर दादाश्री गुजरात, प्रिय अनुज पं. सुमित शर्मा पीयूष जी बिहार, प्रिय अनुज नीतेन्द्र सिंह परमार भारत जी व बृजमोहन श्रीवास्तव साथी जी मध्य प्रदेश, आ. भगत सहिष्णु दादाश्री राजस्थान, आ. डॉ. राहुल शुक्ल साहिल दा श्री इलाहाबाद, कुमार सागर व आनेह बनारस,आ. भूपधर द्विवेदी अलबेला जी, आ. बिजेन्द्र सिंह सजल जी, आ. रश्मि वर्मा रश मुरादाबाद आदि, शेष बीसलपुर के साहित्यकार बंधु |
अब मैं संस्था के अध्यक्ष के रूप में आ0 कौशल कुमार पाण्डेय आस दादाश्री को देखना चाहता था | और संस्था को उ. प्र. की संस्था के रूप में नहीं बल्कि विश्व व्यापी संस्था के रूप में देखना चाहता था | ताकि सिर्फ बीसलपुर व उ. प्र. के लोग ही पदाधिकारी न रहें | सोच को विस्तार मिला | मैं पदाधिकारी के रूप में उन लोगों देखना चाहता था जो इस साहित्यिक महायज्ञ में दूर दूर से अपनत्व लेकर आए थे |वर्तमान संस्था अध्यक्ष से बात की कि कार्यक्रम में अनुपस्थित रहने का कारण? पर समुचित उत्तर नहीं मिला | आ. कौशल कुमार पाण्डेय आस दादाश्री के घर पर एक मीटिंग का आयोजन हुआ, जिसमें संस्था अध्यक्ष समुचित उत्तर नहीं दे पाए या देना नहीं चाहते थे | दो बड़े कार्यक्रम संस्था द्वारा और हुए सितारगंज नवदिया बीसलपुर व 30 मई 2018 परसिया बीसलपुर |इस कार्यक्रम के साक्षी आ. संतोष कुमार प्रीत दा श्री व आ. जलज दादा विशेष रूप से रहे |इसके बाद इस संस्था को ठंडे बस्ते में रख दिया गया |
आ. कौशल कुमार पाण्डेय आस जी व आ. राजेश मिश्रा प्रयास जी व आ. सुशीला धस्माना मुस्कान दीदी व कुछ अन्य साथियों के सहयोग से जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति की गतिविधि को विराम देकर विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत को जन्म मिला | जिसका कार्य क्षेत्र सम्पूर्ण विश्व है | इस संस्था को प्रिय भाई ओमप्रकाश फुलारा प्रफुल्ल जी जैसे निष्ठावान साहित्य प्रवर्तक का सानिध्य मिला | प्रिय अनुज नीतेन्द्र सिंह परमार भारत जी का संचालन मिला | आ. कौशल कुमार पाण्डेय आस दादाश्री का संरक्षण मिला | कर्मयोगिनी आ. मुस्कान दीदी की अध्यक्षा ऊर्जा मिली | अलंकरण व आकर्षण शक्ति प्रिय अनुज पं. सुमित शर्मा पीयूष जी से मिला | प्रिय अनुज हरीश विष्ट जी की ऊर्जा मिली | प्रिय भाई मनोज खोलिया जी का अनुशासन प्रमुख के रूप सचेत व सावधान रहकर जोशीले रूप में कार्य करने की शक्ति मिली | आ. राजेश मिश्र प्रयास जी का सचिवत्व धरातल के कार्यक्रमों के संयोजन के रूप में मिल रहा है | आ. संतोष कुमार श्रीवास्तव प्रीत दादाश्री के राष्ट्रीय सलाहकार के रूप में पाकर इस संस्था ने आगे बढ़कर शीर्ष स्थान प्राप्त किया | आ. जलज दादाश्री का स्नेह, आ. डॉ राहुल शुक्ल साहिल दा श्री के रूप में उपाध्यक्ष पद को गरिमा मिली, शीघ्र ही उनका एक विशेष कीर्तिमान स्थापित होता दिखाई देगा जो अभी पर्दे के पीछे है | आ. डॉ. शरद श्रीवास्तव जी का वर्चस्व संस्था को छत्रछाया दे रहा है, जिसके नीचे रहकर मुझे आत्मीय सुख की प्राप्ति होती है |आ. एस. के कपूर श्री हंस दादाश्री द्वारा बरेली मंडल को विस्तार देना, मेरे लिए गौरव की बात है |आ. शैलबाला जी द्वारा नियमित प्रातःकाल को पटल खोलना एक साधना जैसा है| इससे पूर्व यह कार्य आ. राजेश पाण्डेय वत्स दादाश्री द्वारा किया जाता रहा है |आ. अरविंद सोनी सार्थक भाई जी, आ. शंकर केहरी भाई जी, आ. डॉ. संतोष कुमार सिंह सजल भाई जी, आ. अरुणा साहू दीदी, आ. प्रतिभा प्रसाद कुमकुम दीदी, आ. अनुभूति दीदी, आ. सुनंदा झा सीप दीदी, आ. गीतांजलि वार्ष्णेय दीदी, आ. शंकुन शेडेह दीदी, आ. विभा सिंह दीदी, आ. आशा जोशी दीदी, आ. विश्वेश्वर शास्त्री विशेष दादाश्री, आ. व्योम जी, आ. डॉ. सुशील शर्मा भाई जी, आ. प्रशांत द्विवेदी जी, आ. बाबा वैद्यनाथ झा दादाश्री, आ. मंगला श्रीवास्तव दीदी, आ. महेश अमन भाई जी आदि आदि सक्रिय सभी साथियों का नाम है विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत | विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत का जन्म 30 नवम्बर 2018 को हुआ| जन्म से लेकर आज तक विशेष रूप से इस संस्था को बनारस ने विशेष रूप सँभाला है | आ. कंचन सिंह परिहार भाई जी, आ. मनिन्द्र भाई जी व आ.डॉ. शरद श्रीवास्तव भाई जी व आ. प्रीत दादाश्री के साथ आ. डॉ. लियाकत अली जलज दादाश्री व बनारस के अन्य आत्मीय साथियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता | मैं जब कभी लड़खड़ाया आ. संतोष कुमार प्रीत दादा ने मुझे सँभाला | मैं अनुशासन प्रिय, क्रोधी व दृढ़ संकल्प वाला था | आपने मुझे क्रोध पीना सिखाया, विनम्रता सिखाई | आ. शैलेन्द्र खरे सोम दादाश्री ने छंद लिखना ही नहीं बल्कि भाव भरना भी सिखाया |
आज विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत एक दूसरे से सीखते सिखाते हुए अपने विकास पथ पर अग्रसर हो रही है और नित्य नवीन उपलब्धियों को प्राप्त कर रही है, इन उपलब्धियों के पीछे मुझे खड़े आप दिखाई दे रहे हैं | इस लेख में कुछ ही साथियों के नाम दिए हैं,जो संस्था की नीव हैं शेष सभी साथी इसके कँगूरे हैं जो अपनी चमक से संस्था को निरन्तर चमका रहे हैं | आप सब अन्तःकरण के अनमोल हीरे हैं | आपकी चमक से मैं चमक रहा हूँ | यह संस्था चमक रही है | अपना वरदहस्त मम शीश पर हमेशा बनाए रखें | सहयोग व सानिध्य आशीर्वाद नित प्रदान करते रहें | संस्था आपके सानिध्य में निश्चित आगे बढ़ेगी | आने वाला कल संस्था के इतिहास में आपको स्वर्णिम अक्षरों में निश्चित रूप से अंकित करेगा ,ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है | हम न रुके थे और न अब रुकेंगे, धीरे धीरे ही सही पर आपके सहयोग से नित आगे बढ़ेंगे |
जय-जय
~दिलीप कुमार पाठक 'सरस'
संस्थापक
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
Rajesh Mishra Prayas
(Secretary)
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
संस्था सभी के भाव विचारों समर्पण का गुलदस्ता है
जो आप सभी मूर्धन्य विद्वानों के सहयोग से चलता है
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संस्था के सभी महानुभावों ,गणमान्यों को सादर नमन अभिनंदन,वंदन,
ये आप सभी की उर्जा समर्पण परिश्रम लगन का ही प्रतिफल हैं जो हम सभी भारत के कई प्रदेशों में अपनी साहित्यिक बयार की क्यारियों को सजाया है सवारा है सहेजा है
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जैसे भारतीय संस्कृति की पांच विशेषताएं बताई गयी हैं वह सब विशेषताएं मैने संस्था के अनेक उत्सवों में मैने चरितार्थ देखी हैं
मैने अपनी इन्हीं दो आँखों से आप सभी का समन्वय देखा,आपसी सहयोग देखा ,भाईचारा देखा,कार्यकुशलता देखी,विद्वता देखी साहित्यिक उर्जा देखी,साहित्यिक व्याकरण देखा,
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रस सुने छंद सुने ,अलंकार सुने, ,गीत सुने,गजल सुने,लोकगीत सुने ,मुक्तक सुने ,दोहा सुने,चौपाई सुनी,वह सब सुना जो साहित्य के लिए जरुरी है ,आनंद भी है ,सीखने का मौका भी और कुछ नया करने की उर्जा
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ये सब चीजे एक अखण्ड परिवार साहित्यिक प्रेमियों के द्वारा ही मिल सकती हैं
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साहित्यिक युवाओं को मैं युवराज लिखता हूँ
आसमां जो छू सके वो परवाज लिखा हूँ
मैं ढाई अक्षरों में इस स्नेह का वर्णन नही कर सकता
अवरिष्ठ जनो को साहित्यिक धर्मराज लिखता हूँ
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राजेश मिश्रा प्रयास, राष्ट्रीय सचिव : विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
Sushila Dhasmana Muskan (National President)
मेरी प्रिय संस्था- विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत
संस्था मनुष्यों का एक ऐसा समूह होता है जिनका एक समान संकल्प होता है, एक ध्येय होता है, एक लक्ष्य होता है जिसको प्राप्त करने के लिए सभी एकजुट होकर अहर्निश परिश्रम करते हैं । संस्था में भाग लेने वालों के विचार आपस में बहुधा मिलते ही हैं और यदि कहीं विचारों में कुछ असमानता हो तो वह भी संस्था के कल्याण के लिए ही ! संस्था एक आयामी भी हो सकती है और बहुआयामी भी। संस्था में रहने वालों के संकल्प व विचार अलग- अलग होने से संस्था समग्र रूप से विकसित नहीं हो पाती! कोई भी संस्था ऊँचाइयों का आनन तभी छू पाती है जब उससे जुड़े व्यक्ति ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, लगनशील , त्यागी व परिश्रमी हों! एकला चलो रे के नारे के साथ कार्य आरंभ तो हो सकता है पर गति नहीं पकड़ सकता! वहीं एक संस्था के कर्मठ व पूर्ण समर्पित सदस्य संस्था को धरातल से आकाश की ओर ले जा सकते हैं!
एक ऐसी ही बहुआयामी व ऊँचाइयों को छूती हुई हमारी संस्था विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत भी है। हमारी संस्था भारत में तो अपना परचम लहरा ही रही है अब वह विश्व पटल पर भी प्रसिद्ध हो रही है। वह दिन दूर नहीं कि जब विश्व में भी अपना परिचय नहीं देना पड़ेगा!
हमारी संस्था हिंदी साहित्य के विकास व प्रसार में तो लगी ही है साथ ही साथ यह अन्य सामाजिक कार्यों में भी तत्परता से आगे बढ़ रही है। यह नये साहित्यकारों को मंच देती है साथ ही साथ प्रोत्साहन भी देती है। बहुत प्रकार से बच्चों की शिक्षा में भी सहयोग देती है। चित्रकला , पेंटिंग आदि। जहाँ कई बार बच्चों के लिए सुलेख व श्रुतलेख। संस्था द्वारा चित्रकला व भाषण आदि की प्रतियोगिताएं करवायी जाती हैं वहीं महिलाओं के लिए पाकशाला भी चलती है। जिसमें महिलायें सहर्ष भाग ले सकती हैं।कुछ मौलिक बनाकर बता सकती हैं। अनुज सुमित जी द्वारा कम्यूटर से अलंकरण करना सिखाया जाता है ।आगे बच्चों को परीक्षा के लिए तैयार करना , व्यवसाय के लिए मार्गदर्शन , अपने संस्था के सदस्यों की पुस्तकें छापना आदि की भी तैयारी चल रही है।
यह एक समृद्ध संस्था है और विश्व व्यापी होने जा रही है परंतु यह संस्था यहाँ तक आसानी से नहीं पहुंची! इस संस्था ने कैसे कैसे दिन देखे! यह संस्था हमारे लिए केवल संस्था भर नहीं है अपितु संस्था व हमारा माता व शिशु का नाता है! जैसे घर के सदस्य एक शिशु को हर कठिनाइयों से बचाते हुए पालते हैं वैसे ही यह पली है। इसने अपरिमित झंझावातों का सामना किया !
मैं इस संस्था से सन् २०१५ के अंत से जुड़ी हूँ अतः संस्था के पदाधिकारियों द्वारा किये गये अथक परिश्रम की साक्षी हूँ। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि आदरणीय दिलीप कुमार पाठक सरस जी का हृदयांगन ही इस संस्था का उद्गम स्थल है! आदरणीय सरस जी ,आदरणीय कौशल कुमार पांडेय आस जी, सुमित जी , आदरणीय छंद गुरु शैलेन्द्र खरे सोम जी आदि नेइस संस्था के लिए बहुत ही अधिक परिश्रम किया जो कि अवर्णनीय है! संस्था पहले जन चेतना साहित्यिक साँस्कृतिक समिति के नाम से थी। उस समय के कुछ जुझारू कार्यकर्ता इस प्रकार से हैं,
आदरणीय दिलीप कुमार पाठक सरस जी - सचिव, आदरणीय नवल पात प्रभाकर जी - दिवस संचालक, आ० कौशल कुमार पांडेय जी- गतिविधि संचालक, आ० शैलेंद्र खरे सोम जी- मंच संचालक, आदरणीया सरोज सिंह जी, तारो सिंदिक जी, आदरणीय राजवीर सिंह मंत्र जी, आदरणीय नित्यानंद मधुर जी, आदरणीय सुमित शर्मा पीयूष जी- अलंकरण प्रमुख, आदरणीय भावना प्रवीण जी- अलंकरण सहयोगी आदि, कुछ समय बाद-आदरणीय आशीष जिद्दी जी, आदरणीय विकास भारद्वाज सुदीप जी- ग़ज़ल सिखाने वाले प्रिय अनुज, नमन जैन अद्वितीय जी आदि। जो कुछ अपनी व्यक्तिगत व आवश्यक कारणों से उन्हें हमसे दूर होना पड़ा। जो कि हमें व उनको अच्छा नहीं लगा!
२०१७ में संस्था रजिस्टर्ड हो गयी थी। हमारी संस्था शिशु रूप में भी नवोदित साहित्यकारों को मंच प्रदान कर रही थी व प्रोत्साहन के लिए विभिन्न प्रकार के सम्मान से अलंकृत कर रही थी। जैसे प्रखर दोहा सर्जक, श्रेष्ठ टिप्पणीकार, सारस्वत सम्मान समारोह में राष्ट्र नाद अलंकरण, अर्णव काव्य रत्न, प्रभावकारी प्रतिभागिता सम्मान, अक्षय गौरव सम्मान आदि।
संस्था कई प्रकार की प्रतियोगितात्मक कार्यक्रम कर रही थी जैसे - दोहा प्रतियोगिता , चौपाई लेखन आदि।
इसके अतिरिक्त संस्था ऑनलाइन कवि सम्मेलन भी आयोजित कर उत्साह वर्धन करने लगी थी। संस्था के तत्वावधान में पहला ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिनाँक १२\६\२०१७ की संध्या को हुआ। जो कि बहुत सफल व भव्य था!
समय के साथ ही साथ संस्था में परिवर्तन आते गये। कभी सुखद तो कभी दुःखद! जब किसी परिवार में बहुत से लोग रहते हैं तो विचारों में ताल मेल बैठाना पड़ता है। सामंजस्य न बैठ पाने या किसी अन्य परिस्थिति वश कुछ अपने छूटते भी चले जाते हैं ! पर कई अन्य गुणीजन हमारे साथ जुड़ते भी गये! अतः जिनको हमने अपना मान लिया था जब वे संस्था से पृथक हुए तो मन दुखी हुआ। अनुज दिलीप जी का तो दिल ही बैठ जाता था । संस्था का निर्माण जो किया था उन्होंने! नवागन्तुकों से संस्था को संबल मिलता था! संस्था को विशेष संबल तब मिला जब संस्था से आदरणीय ओमप्रकाश फुलारा प्रफुल्ल जी जैसे हरफनमौला , कर्तव्यनिष्ठ व कर्मठ व्यक्तित्व तथा आदरणीय नीतेंद्र सिंह परमार भारत जैसे युवा ओजस्वी व परिश्रमी व्यक्ति जुड़े! प्रिय अनुज ओमप्रकाश फुलारा प्रफुल्ल जी व प्रिय अनुज दिलीप कुमार पाठक सरस जी के अदम्य साहस, *कर्तव्यनिष्ठता व कल्पनाशीलता का कोई सानी नहीं है! इनकी लगनशीलता से संस्था ने प्रगति के क्षेत्र में उड़ानें भरी है। इन सभी यात्राओं में अनुज संतोष कुमार प्रीत जी व आदरणीय दादाश्री कौशल कुमार पांडेय आस जी निरंतर हमारे साथ रहे व मार्गदर्शन करते रहे! विषम परिस्थितियों में भी हमारे राष्ट्रीय सलाहकार आदरणीय संतोष कुमार प्रीत जी संस्था के कल्याण के लिए नये नये सुझाव ले आते थे और अब भी लाते हैं ! मैं हूँ न , की तर्ज पर आदरणीय कौशल कुमार पांडेय आस जी व प्रिय प्रीत जी सदैव तत्पर दिखाई देते हैं।
यह संस्था एक ओर हम सबके लिए संतान सम है तो दूसरे स्वरूप में हमारी गुरु भी है! हमने संस्था से बहुत कुछ सीखा है। मैं यदि अपनी बात करूँ तो मुझे इस संस्था ने पर्याप्त ज्ञान मान व आशीर्वाद तो दिया ही है साथ ही साथ बहुत ही स्नेही व अपनेपन से भरपूर परिवार भी दिया है।विद्वान व ममतामय छंदगुरु आदरणीय शैलेंद्र खरे सोम जी, व्याकरण विद आदरणीय भगत सहिष्णु जी , आदरणीय भ्राता श्री कौशल कुमार पांडेय आस जी, बड़े भाई आदरणीय बाबा बैद्यनाथ झा जी, भ्राता श्री आदरणीय एस के कपूर श्रीहंसजी , विद्वान बड़े भाई आदरणीय सुशील जी, आदरणीय भ्राता इंजीनियर संतोष जी , आदरणीय संतोष सजल जी भाई जी आदि जैसे भ्राता मिले हैं।मेरी अग्रजायें आ० रश्मि जी, अरुणा साहू जी, आ० प्रतिभा कुंमकुम जी आदि का विशेष आशीष व स्नेह मिला है। इसके साथ ही मुझे उपहार स्वरूप मेरे प्रिय अनुज दिलीप जी, डाक्टर राहुल जी, नीतेंद्र जी, प्रफुल्ल जी, पीयूष जी,प्रयास जी, शरद जी, राजेश जैन जी , ब्रजेश जी , अरविंद जी, ब्रजमोहन साथी जी, विश्वेश्वर जी, मनोज खोलिया जी, हरीश बिष्ट जी आदि तो मिले ही साथ में प्यारी - प्यारी बहनें शकुन जी, गीताँजलि जी, मंगला जी , विभा जी, मंशा जी , ज्योति जी व बहन शैलबाला जी, साधना कृष्ण जी, आदरणीया मीना भट्ट जी, अनीता सिद्धि जी आदि भी मिलीं। सभी ने मुझे बहुत आदर, सम्मान व अपरिमित स्नेह दिया है जिससे मैं उऋण नहीं सकती और होना भी नहीं चाहती! प्रिय अनुज दिलीप जी का अपनी इस दीदी पर ऐसा अटल विश्वास व स्नेह है कि जो अपने आप में अवर्णनीय व बेजोड़ है। मेरे प्रिय अनुज साहिल जी, प्रफुल्ल जी , नीतेंद्र जी, खोलिया जी , प्रयास जी,शरद जी, साथी जी, विशेष जी आदि भी मुझसे बहुत अधिक स्नेह करते हैं। मेरी बात मेरे कोई भी अनुज व अग्रज तथा मेरी सभी बहनें कभी भी नहीं टालती ! मैं भी अपने सभी बड़ों को अनुजावत व छोटों को माता सम स्नेह देने का प्रयास करती हूँ। इसमें मैं कितनी सफल हो पायी हूँ, यह मैं नहीं जानती पर मेरा यह प्रयास चलता रहेगा! मैं ईश्वर से सभी के उत्थान, प्रसन्नता व सम्पन्नता के साथ ही साथ माँ शारदे का आशीर्वाद माँगती हूँ!
कविता बनाने में या कहें भावों को तुकबंदी में व्यक करने की मेरी रुचि कक्षा छठी से है। तब मुझे इतना ज्ञान न था। यह आशीष मुझे अपने पिताश्री से उत्तराधिकार में मिला। वे एक बहुत जुझारू व्यक्तित्व के धनी व प्रतिष्ठित कवि थे ! हमारे परिवार को कवि श्रेष्ठ आदरणीय राजदेव राय प्रियदर्शी जी का सानिध्य प्राप्त था जिनकी कृपा से स्नातकोत्तर करते हुए मुझे राष्ट्रीय कवि श्रद्धेय शैल चतुर्वेदी जी, सम्माननीय गोपालदास नीरज जी, श्रद्धेय अशोक चक्रधर जी , श्रद्धेय किशन सरोज जी के सम्मुख बरेली आइ एम एक हाॅल व अन्य स्थानों में काव्य पाठ करने का सौभाग्य प्राप्त कर हुआ था। परंतु इस संस्था से जुड़ने के बाद ही मुझे अपनी कविताओं में वास्तविक परिपक्वता परिलक्षित हुई है । मुझे अपने अग्रजों से सीखने को मिला ही पर अनुज गणों से भी मैंने सीखा! एक विज्ञान की छात्रा व शिक्षिका को यदि कुछ छंद ,अलंकार व रसों का ज्ञान हो और वह कविता भी लिखे तो उसे समाज में बहुत मान मिलता है। मुझे भी बहुत अधिक सम्मान मिला पर जब आदरणीय छंदगुरु का वरद हस्त मिला , अनुज दिलीप जी जैसे नम्र व ज्ञानी मिले तो मुझे लगा कि मुझे हिंदी में वास्तव में एक नन्हीं सी बूँद भी नहीं आती थी!
इसी प्रकार सीखते सिखाते हुए हम सभी कब अटूट स्नेह के बंधन में बँध गये यह पता भी नहीं चला कि हमारी संस्था कब भारत की समृद्ध संस्था में से एक बन गयी है। जहाँ एक ओर संस्था में हनुमान सम , प्रिय अनुज प्रफुल्ल जी जो कि संस्था कोषाध्यक्ष के साथ ही साथ उत्तराखंड इकाई के अध्यक्ष, हैं वहीं दूसरी ओर स्वर - सम्राट , जन चेतना एंथम के निर्माता, अलंकरण प्रमुख व बिहार इकाई के अध्यक्ष प्रिय अनुज सुमित शर्मा पीयूष जी भी हैं जो नित्यप्रति संस्था की सुसज्जितता के बारे में प्रयत्नशील रहते हैं। आप उनकी कला का प्रदर्शन सम्मान पत्रों के रूप में तो देखते ही हैं । कम्यूटर में दक्ष मेरे इस अनुज ने मेरे दूसरे अनुज संतोष कुमार प्रीत जी के साथ मिलकर हमारी संस्था की वेबसाइट बना ली है। फेसबुक पेज तो इस संस्था को इन्होंने दिलवा ही दिया था जिसमें बहुत से विद्वान कविगणों ने लाइव काव्य पाठ में भाग लिया था और देखिए अब संस्था ट्वीटर पर भी है।
ईश्वर की अनुकंपा और आप सबका स्नेह पूरित सहयोग रहा तो अपनी संस्था विश्व भर में अग्रणी संस्थाओं में से एक होगी!
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।
सुशीला धस्माना" मुस्कान"
राष्ट्रीय अध्यक्षा, विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत।
Om Prakash Fulara Prafull (Treasurer)
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
हिंदी सेवा में समर्पित विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत साहित्य प्रेमियों की पहली पसंद बनती जा रही है। संस्था ने अल्प समय में साहत्यिक क्षेत्र में जो मुकाम हासिल किया है वह संस्था के पदाधिकारियों एवं संस्था से जुड़े सभी रचनाकारों के त्याग एवं समर्पण का ही परिणाम है। विश्व जनचेतना ट्रस्ट द्वारा सिद्धहस्त साहित्यकारों के बीच नवोदितों को सीखने के लिए जो अवसर प्रदान किए जाते हैं वह वंदनीय हैं। संस्था अपने जिन संकल्पों के साथ कार्य कर रही निश्चय ही वह प्रसंशनीय है।
वर्ष 2019 में आ. भुवन बिष्ट जी द्वारा मुझे इस संस्था से जोड़ा गया उस समय कुछ अतुकांत रचनाओं के सहारे मैं अपनी रचनात्मकता की शुरुआत कर रहा था। संस्था के प्रबुद्ध रचनाकारों के सानिध्य में मुझे सीखने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करने के लिए आ. भुवन बिष्ट जी का हृदयतल से आभार प्रकट करता हूँ। संस्था के साथ जुड़ने पर संस्था के यशस्वी संस्थापक आ. दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी का विशेष सानिध्य प्राप्त हुआ उनके मार्गदर्शन में कलम चलाने का प्रयास करते करते पूज्य गुरुदेव आ. शैलेंद्र खरे सोम जी के सम्पर्क में आया और छंदों की ओर अग्रसर हो गया।
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत से जुड़ने वाले सभी रचनाकारों से मैं यही कहना चाहता हूँ कि यदि आप में सीखने की ललक है तो पटल पर उपस्थित समस्त प्रबुद्ध साहित्यकार हमेशा आपकी सहायतार्थ तत्पर हैं।
विश्व जनचेतना ट्रस्ट एक ऐसा परिवार है जिसके सभी सदस्य आपस में इस प्रकार गुँथे हुए हैं जैसे मोती के दाने एक धागे में गुँथे हों। किसी भी मोती की चमक कम नहीं है।
मैं जब से अपनी इस संस्था में जुड़ा सभी सदस्यों का अपार स्नेह प्राप्त हुआ जो मेरी सीखने की ललक को हमेशा बढ़ाता रहा। आज मैं जो भी हूँ इस संस्था और सभी सदस्यों के स्नेह का ही परिणाम है। संस्था ने मुझ जैसे अल्पबुद्धि को सराहा और विभिन्न अलंकरणों से अलंकृत करते हुए अनेक जिम्मेदारियाँ भी प्रदान की हैं उन जिम्मेदारियों को निभाने में मैं कहाँ तक सफल हो पा रहा हूँ यह मुझसे ज्यादा आप लोग ही समझ सकते हैं। लेकिन मैं अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाने के लिए संकल्पबद्ध हूँ। जीवन की अंतिम साँस तक मेरा यह जीवन संस्था के लिए समर्पित रहेगा।
ओम प्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल'
व्यवस्थापक/राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष
प्रदेश अध्यक्ष उत्तराखंड
Pt. Sumit Sharma Piyush (Editor-in-Chief)
आकाश" है जनचेतना
बिलखते शब्दों की अंतिम आस है जनचेतना।
सिकुड़ते साहित्य की हर साँस है जनचेतना।
युग-तिमिर में भोर का प्रकाश है जनचेतना।
सबका ही तो साथ औ' विकास है जनचेतना।
हर कड़ी में काव्य का अनुप्रास है जनचेतना।
उन्मुक्त सा अहसास है, "आकाश" है जनचेतना।
शिल्प औ सर्जन की सु-सत्कार है जनचेतना।
काव्य से क्रीड़ा का इक अधिकार है जनचेतना।
भाव के बहाव की धारा प्रणोदित जो करे,
सृजन के संगम में वह जलधार है जनचेतना।
वारिधि का उरनिहित-उल्लास है जनचेतना।
उन्मुक्त सा अहसास है, "आकाश" है जनचेतना।
Dr. Sharad Shrivastava Sharad (Spokesperson)
विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत: भारतीयता का एक गौरवशाली मंच
भारतवर्ष की एक ऐसी साहित्यिक संस्था जिसने संपूर्ण विश्व में हिंदी के माध्यम से निज राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति के निमित्त जन चेतना पैदा करने का बीड़ा उठाया हो, का नाम विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत है। यह संस्था एक ऐसा विशाल मंच है जो केवल भारत वर्ष ही नहीं अपितु देश-दुनिया को अपने भीतर समावेशित कर अद्यतन साहित्य एवं संस्कृति का एक विस्तारित क्षेत्र बन चुका है।आदरणीय दिलीप कुमार पाठक सरस जी,जो संस्था के संस्थापक हैं,के भगीरथ प्रयत्न से उद्भूत हमारी ज्ञान गंगा हिंदी भाषियों, हिंदी प्रेमियों या यूं कहूं कि साहित्यानुरागियों को जीवित मोक्ष प्रदान करने का वरेण्य साधन हो चुकी है। विद्वतजन! हमारी आस्था का प्रतीक माँ गंगा तो गोमुख से नि:सृत होकर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती हैं लेकिन हमारी संस्था रूपी ज्ञान गंगा ने अपने विस्तृत वितान के माध्यम से संपूर्ण विश्व को आच्छादित कर लिया है। संस्था द्वारा हिंदी के मानवर्धन के लिए किए जा रहे प्रयास सर्वथा श्लाघनीय हैं।हमारी संस्था निरपेक्ष रूप से साहित्येतिहास में अपने अवदानों एवं प्रतिदानों के लिए स्वर्णाक्षरों में अंकित की जाएगी, इस पर मत वैभिन्य की संभावना दूर-दूर तक नहीं हो सकती। जय-जय हिंदी के समृद्ध साहित्यिक पटल के माध्यम से संपूर्ण साहित्य जगत को एकीकृत कर साहित्य के जिस सांगठनिक ढांचे को सुदृढ़ कर रही है, निश्चित रूप से इस प्रयास के लिए संस्था का प्रशासक मंडल, समस्त पदाधिकारीगण, साहित्य सेवी, कलमकार साथी, विशेषत: कर्मठ एवं क्रियाशील संस्थापक आदरणीय दिलीप कुमार पाठक सरस जी सतत बधाई के पात्र हैं। सम्मानित पटल पर देश दुनिया के कलमकार जुड़कर न केवल अपनी रचनाधर्मिता को प्रमाणित करते हैं, अपितु पटल के माध्यम से ज्ञानियों एवम मनीषियों का सानिध्य और सामीप्य प्राप्त कर धन्यता के शिखर की अनुभूति भी करते हैं। संस्था के पटल पर उपलब्ध विद्वतपरिषद ज्ञान गंगा एवम संस्कार की एक ऐसी प्रवहमान जलधारा है,जिसमें अवगाहन कर हम जैसे न जाने कितने कलमकार अपने प्रारब्ध के पुण्य को फलित होते हुए देखते हैं। हमारी संस्था विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत ऐसा मुझे वैयक्तिक रूप से प्रतीत होता है कि अपनी सुगंध से साहित्य के धरातल पर निज राष्ट्र की सीमाओं से बाहर निकलकर संपूर्ण वसुधा को सुवासित कर रही है। यहां यह तथ्य भी समान रूप से उल्लेखनीय है कि हमारी मातृभाषा हिंदी का प्रभाव सात समंदर पार तक अनुभूत होने लगा है। साहित्य के इस महायज्ञ की पताका अपने कर कमलों में लिए भारतवर्षोन्नति में हिंदी के अवदान को चिन्हित करते हुए हमारे साहित्यकार साथी उत्कर्ष की ओर अग्रसर हैं। यहां यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि साहित्येतिहास में हिंदी को सक्षम,सबल, समर्थ एवम सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए संस्था के अथक प्रयासों को सदैव याद ही नहीं अपितु साहित्य के स्वस्थ आंदोलन में अपनी आहुतियों के माध्यम से हम रचनाकार आंदोलन की धारा को सुदृढ़ करने का जो सद्प्रयास कर रहे हैं, वह भी कालांतर में हमारे गौरवपूर्ण अनुभूति का नियामक होगा।
एक बार पुनः सम्मानित संस्था, यशस्वी संस्थापक,समर्पित अध्यक्षा,सचेत सलाहकार,दक्ष प्रशासक मंडल, योग्य पदाधिकारी गण एवम समस्त गुणी रचनाकारों के प्रति अपना आत्मिक आभार व्यक्त करते हुए संस्था के सतत उत्कर्ष की कामना करता हूं ....
सादर एवम साभार....
डॉ. शरद श्रीवास्तव शरद
सदस्य, प्रशासक मण्डल एवम अध्यक्ष, वाराणसी इकाई, विश्व जन चेतना ट्रस्ट भारत
ADMINISTRATIVE TEAM