भाषा विचारों की अभिव्यक्ति का मुख्य माध्यम है। यह मनुष्यों द्वारा संप्रेषण (communication) के लिए उपयोग की जाने वाली ध्वनियों, शब्दों, संकेतों और लिपि का एक व्यवस्थित रूप है।
पतंजलि: "भाषा वह साधन है जिससे मन के भाव प्रकट होते हैं।"
डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी: "भाषा मनुष्य के विचारों और भावनाओं की अभिव्यक्ति का साधन है।"
स्वामी दयानंद सरस्वती: "मनुष्य को ईश्वर द्वारा दिया गया एक दिव्य उपहार भाषा है।"
व्यवस्थितता – भाषा एक निश्चित नियमों और व्याकरण पर आधारित होती है।
सामाजिकता – भाषा समाज में संवाद स्थापित करने का माध्यम होती है।
परिवर्तनशीलता – समय के साथ भाषा में परिवर्तन होते रहते हैं।
अभिव्यक्ति का माध्यम – भाषा के द्वारा हम अपने विचारों, भावनाओं और जरूरतों को व्यक्त कर सकते हैं।
स्वर और लिपि – भाषा ध्वनियों (बोलचाल) और लिपि (लिखित रूप) में प्रकट होती है।
मूल भाषा (Natural Language) – जो जन्मजात रूप से बोली जाती है, जैसे हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत आदि।
कृत्रिम भाषा (Artificial Language) – जो विशेष उद्देश्यों के लिए बनाई जाती है, जैसे कंप्यूटर भाषा (C, Python)।
मातृभाषा (Mother Tongue) – वह भाषा जो व्यक्ति बचपन से अपने परिवार और समाज से सीखता है।
राजभाषा (Official Language) – वह भाषा जिसे किसी देश या राज्य में सरकारी कार्यों के लिए अपनाया जाता है, जैसे भारत में हिंदी।
संवाद भाषा (Lingua Franca) – विभिन्न भाषाओं के लोगों के बीच संपर्क स्थापित करने वाली भाषा, जैसे अंग्रेज़ी।
ध्वनि भाषा (Sound Language) – आदि मानव संकेतों और ध्वनियों का प्रयोग करता था।
शब्द भाषा (Word Language) – धीरे-धीरे शब्दों और व्याकरण का विकास हुआ।
लिखित भाषा (Written Language) – चित्रलिपि से शुरू होकर लिपियों का विकास हुआ।
आधुनिक भाषा (Modern Language) – आज भाषा में तकनीक और डिजिटल माध्यमों का समावेश हो चुका है।
भारत में 22 अनुसूचित भाषाएँ हैं (जैसे हिंदी, बंगाली, तमिल, तेलुगु, मराठी, उर्दू आदि)।
संविधान के अनुसार हिंदी भारत की राजभाषा है।
भारतीय भाषाएँ संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश से विकसित हुई हैं।
भाषा मानव समाज की सबसे महत्वपूर्ण और आधारभूत आवश्यकता है। इसके बिना संचार, ज्ञान-विज्ञान, साहित्य और संस्कृति का विकास असंभव है। भाषा केवल संवाद का माध्यम ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराओं की संवाहक भी है।
भाषा और बोली दोनों ही संचार के माध्यम हैं, लेकिन इन दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं।
परिभाषा
भाषा एक व्यवस्थित और मानकीकृत संचार प्रणाली होती है जिसमें व्याकरण, लिपि और साहित्य होता है।
बोली एक क्षेत्रीय या स्थानीय रूप होती है, जिसका कोई निश्चित व्याकरण या लिपि नहीं होती।
व्याकरण
भाषा का एक निश्चित व्याकरण होता है।
बोली में व्याकरण का सख्त नियम नहीं होता।
लिपि
भाषा को लिखने के लिए लिपि होती है।
अधिकतर बोलियों की अपनी कोई लिपि नहीं होती।
प्रसार
भाषा व्यापक स्तर पर बोली और समझी जाती है।
बोली का प्रयोग सीमित क्षेत्र में होता है।
उदाहरण
हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, तमिल, मराठी आदि।
अवधी, ब्रज, भोजपुरी, मालवी, छत्तीसगढ़ी आदि।
सरकारी मान्यता
कई भाषाओं को संविधान में मान्यता प्राप्त होती है।
बोलियाँ आमतौर पर आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं होतीं।
लिखित साहित्य
भाषा में समृद्ध साहित्य, लेखन और पुस्तकों का भंडार होता है।
बोली में साहित्य सीमित या मौखिक रूप में पाया जाता है।
भाषा अधिक व्यापक, मानकीकृत और लिखित रूप में संगठित होती है, जबकि बोली किसी भाषा का स्थानीय रूप होती है जो आमतौर पर बोलचाल तक सीमित रहती है। समय के साथ कुछ बोलियाँ विकसित होकर भाषा का रूप ले सकती हैं, जैसे हिंदी स्वयं ब्रज और अवधी जैसी बोलियों से विकसित हुई है।
भाषा को व्यक्त करने के विभिन्न माध्यम होते हैं, जिनके द्वारा मनुष्य अपने विचार, भावनाएँ और सूचनाएँ दूसरों तक पहुँचा सकता है। ये माध्यम मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
इसमें भाषा को ध्वनियों और शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है।
मनुष्य द्वारा अपनी जुबान और ध्वनियों के माध्यम से संप्रेषण किया जाता है।
जैसे – बातचीत, भाषण, संवाद आदि।
जहाँ भाषा को ध्वनि रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
जैसे – रेडियो, पॉडकास्ट, ऑडियोबुक, टेलीफोन वार्तालाप।
भाषा को गीतों, भजनों और कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
जैसे – लोकगीत, फिल्मी गीत, भक्ति संगीत आदि।
इसमें भाषा को लिखित रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।
भाषा को कागज या अन्य सतहों पर लिखा जाता है।
जैसे – किताबें, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, हस्तलिखित पत्र आदि।
कंप्यूटर, मोबाइल और अन्य डिजिटल माध्यमों में लिखित भाषा का उपयोग किया जाता है।
जैसे – ईमेल, ब्लॉग, व्हाट्सएप संदेश, सोशल मीडिया पोस्ट आदि।
भाषा को बिना बोले या लिखे संकेतों के माध्यम से भी व्यक्त किया जाता है।
हाव-भाव, इशारों और शारीरिक मुद्राओं के द्वारा भाषा को व्यक्त किया जाता है।
जैसे – मुस्कान, रोना, सिर हिलाना, हाथ के इशारे।
मूक और बधिर व्यक्तियों के लिए हाथों, उँगलियों और चेहरे के भावों के माध्यम से संवाद स्थापित किया जाता है।
जैसे – भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL), अमेरिकी सांकेतिक भाषा (ASL)।
चित्रों, प्रतीकों और चिह्नों के माध्यम से भाषा व्यक्त की जाती है।
जैसे – सड़क के साइन बोर्ड, इमोजी, ग्राफिक्स, चार्ट।
भाषा को व्यक्त करने के अनेक माध्यम होते हैं, जो समय, स्थान और जरूरत के अनुसार बदलते रहते हैं। आधुनिक युग में डिजिटल और श्रव्य-दृश्य माध्यमों की भूमिका बहुत बढ़ गई है, जिससे भाषा का प्रचार-प्रसार और भी तेज हो गया है।
व्याकरण वह शास्त्र है जो भाषा के शुद्ध रूप, सही प्रयोग और नियमों का अध्ययन करता है। यह शब्दों, वाक्यों, उनके रूपों, अर्थों और उपयोग के सही तरीकों को स्पष्ट करता है।
सरल परिभाषा:
व्याकरण वह विधा है जो भाषा को सही ढंग से पढ़ने, लिखने और बोलने की कला सिखाती है।
पंडितों द्वारा दी गई परिभाषाएँ:
पाणिनि: "शब्दानुशासनम् व्याकरणम्" (शब्दों का अनुशासन ही व्याकरण है।)
पतंजलि: "संस्कृत भाषा के शुद्ध प्रयोग की विधि को व्याकरण कहते हैं।"
काशीनाथ त्रिपाठी: "व्याकरण भाषा का विधान है।"
संरचनात्मक व्याकरण – शब्द और वाक्य की रचना के नियम।
रचनात्मक व्याकरण – शब्दों के निर्माण से जुड़े नियम।
परिभाषिक व्याकरण – शब्दों और वाक्यों के सही उपयोग के नियम।
निष्कर्ष:
व्याकरण भाषा की आत्मा है, जो हमें शुद्ध, स्पष्ट और प्रभावी अभिव्यक्ति करने में सहायता करता है।
यह भाषा में प्रयुक्त वर्णों (अक्षरों) का अध्ययन करता है।
इसमें वर्णों के उच्चारण, ध्वनियों, वर्गीकरण और लिपि का अध्ययन किया जाता है।
मुख्य घटक:
स्वर (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ…)
व्यंजन (क, ख, ग, घ… म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह)
संधि (स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि)
इसमें शब्दों की रचना, रूप और प्रकार का अध्ययन किया जाता है।
मुख्य घटक:
शब्द की उत्पत्ति (तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी)
शब्द भेद (संग्या, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, अव्यय आदि)
उपसर्ग और प्रत्यय
यह शब्दों के रूप परिवर्तन को दर्शाता है, जैसे संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया का विभक्ति, लिंग, वचन, काल आदि के अनुसार रूप बदलना।
मुख्य घटक:
संज्ञा के लिंग, वचन, कारक
क्रिया के काल, पुरुष, वचन परिवर्तन
इसमें वाक्य की संरचना और उसके सही प्रयोग का अध्ययन किया जाता है।
मुख्य घटक:
वाक्य के भेद (सरल, संयुक्त, मिश्रित)
वाक्य निर्माण के नियम
वाक्य शुद्धि
इसमें शब्दों और वाक्यों के अर्थ, भाव और उनके सही प्रयोग का अध्ययन किया जाता है।
मुख्य घटक:
पर्यायवाची, विलोम, अनेकार्थी शब्द
मुहावरे और लोकोक्तियाँ
अलंकार
व्याकरण के ये पाँच प्रमुख अंग भाषा को सही, स्पष्ट और प्रभावी रूप से प्रयोग करने में सहायता करते हैं। इन सभी भागों का अध्ययन करने से भाषा का सही ज्ञान प्राप्त होता है और लेखन एवं वाचन में निपुणता आती है।
व्याकरण भाषा का नियम और संरचना निर्धारित करता है। इसे पढ़ने से भाषा को सही, स्पष्ट और प्रभावी ढंग से बोलने, लिखने और समझने में सहायता मिलती है।
व्याकरण हमें शब्दों और वाक्यों के सही प्रयोग की जानकारी देता है।
यह त्रुटियों को सुधारता है और भाषा को स्पष्ट बनाता है।
उदाहरण: "मैं जाता हैं।" (गलत) → "मैं जाता हूँ।" (सही)
व्याकरण के ज्ञान से निबंध, पत्र, कहानियाँ और अन्य लिखित सामग्री अधिक प्रभावी बनती है।
बिना व्याकरण के लेखन अस्पष्ट और गलत हो सकता है।
सही व्याकरण का उपयोग करने से संवाद अधिक प्रभावशाली और सटीक बनता है।
इससे दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और गलतफहमियाँ कम होती हैं।
हिंदी व्याकरण सरकारी परीक्षाओं (UPSC, SSC, बैंकिंग, रेलवे, CTET आदि) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
व्याकरण का ज्ञान भाषा शिक्षक और साहित्यकारों के लिए आवश्यक होता है।
मुहावरे, लोकोक्तियाँ, अलंकार, समास आदि का सही प्रयोग भाषा को अधिक आकर्षक बनाता है।
साहित्य और कविता को समझने और आनंद लेने में मदद मिलती है।
हिंदी व्याकरण का ज्ञान होने से अन्य भाषाओं (संस्कृत, अंग्रेज़ी, तमिल आदि) को सीखना आसान हो जाता है।
उदाहरण: हिंदी और संस्कृत दोनों में "संधि" और "समास" के नियम मिलते-जुलते हैं।
व्याकरण भाषा की आत्मा है। इसके बिना भाषा अव्यवस्थित हो जाएगी और सही अभिव्यक्ति संभव नहीं होगी। इसलिए, भाषा को प्रभावी और शुद्ध बनाने के लिए व्याकरण का अध्ययन करना आवश्यक है।